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अर्थ-राजा मोह कपटको पासमें बुलाकर सब बातें पूछने लगानिवृत्ति नामकी रानी कहाँ है, उसका पुत्र विवेक कहाँ हैं, उनकी कुशलता का समाचार कहो?
व्याख्या-राजा मोह बहुत ही व्याकुल था कि कैसे विवेक और निवृत्तिको वशमे किया जाए । इसके लिए पहिले उनका निवास स्थान जानना जरूरी था । इसलिए वह दोनों का निवास पूछता है । निवास का पता चल जाने पर उन्हें वशमें करना सुगम हो जायगा । मोहको बड़ा मद हो रहा था । क्योंकि संसार का अर्थ मोह ही है । कोई पुरुष इसे मिथ्यात्वके नाम से तो कोई, रागद्वेषके नाम से और कोई अधर्मके नाम से जानते हैं । यह मोह अनादि से सभी आत्म तत्वों में घुल मिल कर बैठा है और किसीको निर्मोह नहीं होने देता ।
कपट नामक दूतके द्वारा मोह से पुण्यपुर की प्रशंसा दोहा :
मोह ! सणहू तुम कण्ण परि' कपटु थयासह एम । जइसी दीठी नयणि मई तइसी बात कहेम ।। २३।।
अर्थ--तन्त्र कपटने इस प्रकार कहा—हे मोह राजन्, तुम कान लगाकर सुनो । जैसी रीति नेत्रोंमें दिखाई दी है, वैसी बात ही कहूँगा।
व्याख्या-लोकमें यह कहावत प्रसिद्ध है कि आँखों देखी बात ही सच होती है । इसीके अनुसार वह कपटदूत राजा मोहको अपनी आँखों द्वारा देसी पुण्यपुर नगरीकी प्रशंसा करने लगा । दूतों का यह कार्य होता है कि वे वेशको बदलकर स्वयं यथार्थताका पता लगाकर, समझकर तब अपना अभिप्राय अपने स्वामीसे प्रकट करते हैं । उसका कार्य होता है स्वामी के अनुकूल प्रवृत्ति करना । स्वामीको सब देशोंके समाचार देते रहना जिससे शत्रुका संहार होता रहे । राजाओंके नेत्र दूत ही हुआ करते हैं । वस्तु छन्द : वसइ पट्टणु पुनपुरु पद्मड्ड । तहिं राजा सत्तु थिस तिमि विवेकु गडि सुथिरु थपिउ । परणाई धीय तिसु रज्जु देसु सव्वाइ समप्पिउ । दया-धम्मु जहि पालियइ कीजइ पर उपगारु । तहं ठइ सुपनि न दीसई चोर अन्यायी जारु ।।२४।।
१. क ख. धरिटे