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मदनजुद्ध काव्य
मोहराज चार दूतों को बुलाकर उन्हें विवेक का पता लगाने
हेतु भेजता है सालु विवेकह मोह-मनि सोवइ पय न पसारि । एक दिवसि इस सोचकरि दूत बुलाए चारि ।।१२।।
अर्थ- मोह राजा का मन विवेकके शल्य (चिन्ता) से चिन्तित था। इस कारण वह पैर पसारकर सो नहीं पाता था । एक दिन ऐसा विचार कर कि मैं किस प्रकार निश्चिन्त होकर सो सकूँ? उसने अपने चार दूती को बुलाया ।
व्याख्या—यहाँ चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान की बात कही गई है । जहाँ पर चेतनकी प्रवृत्ति और निवृत्ति दो रानियाँ होती हैं । विवेक पुत्र होता है । प्रथम संवेग आदि गुण होते हैं और चेतन निवृत्ति के साथ ही रह जाता है । ऐसी सुमति आती हैं कि वह विषय-कषायों की प्रवृत्तिसे बचनेके लिए सत्यके आचरणमें आ जाता है । उसे व्यसन पाप, तथा अशुद्धभाव परिणांत आकर्षित नहीं करती । जब वह मोह का पराधीन दशासे अपनी स्वाधीन दशाकी ओर बढ़ता है, तब भयसे घबड़ाकर मोह अपने चार दूतोंको बुलाता है । मडिल्ल छन्द :
मोह चारि तब दूत बुलाए, सार लेण कई बेगि पठाए । कपटु कुसत्यु पापु वक्खाणहु, अवरु त द्रोह चलत्या जाणाहु ।।१३।।
अर्थ-राजा मोहने चारों दूतोंको बुलाया और निवृत्ति रानीके पुत्र विवेकका पता लगानेके लिए उन्हें शीघ्र ही कहीं-कहीं भेजा । उसका प्रथम दूत कपट, दूसरा दूत कुशास्त्र, तीसरा दूत पाप कहा गया है और चौथा दूत द्रोह जानना चाहिए ।
व्याख्या-अभिधा-वृत्तिसे यही तात्पर्य है कि राजा स्वयं तो सर्वत्र नहीं जाता । दूत ही राजाके नेत्र होते हैं । राजा उन दूतोंके द्वारा ही सब देशों को देखता है । कौन मित्र है, और कौन शत्रु है, निर्बल है, सबल है । उसे साम, दाम, दण्ड, भेद आदि में से किसके द्वारा जीता जा सकता है । दूत ही राजाको सभी प्रकारकी बातों से अवगत कराते हैं | व्यंजना वृत्तिसे इसका अर्थ है कि आत्माके ऊपर अनादिकाल से मोहका १. रक, अबरु
भिषा-वृत्तिसे यही तात्पर्य है कि राजा स्वयं तो सर्वत्र