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प्रस्तावना
"नीनि रतन जोसण काय, धारि बभत्रन असि, नफीरी बाजहि जमि, गहिर सरे । रहिय दया पोरिष-पूरि, भागिय हिंसा दृरि, बल उपसम सूरि, कियउ मरे ।। आए अतिशय तीस चरि, परजै लि चकरि, मनु शुक्ल धानु धारि, राखिउ मणो । 'भाजु-भाज रे मदन धुट, आदिनाहु सिरि सट. देइ करइ दहवट, प्रथम जिणो ( 1 34 ) चठपइआ
इस छन्द के 4 पन प्रस्तुत रचना में उपलब्ध हैं । इसके चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 30 मात्राएं होती हैं । कवि पिंगल के अनुसार यह छन्द अमृत के समान प्रकाशित होता है। । इसमें 10, 8 और 12 मात्रा पर यति होती है । अन्त में एक सगण (175) और एक गुरु होता है । जैस"जो दल बल पूरो. सब विथि सूरो, पंचहं महि परवीणो । परमत्थउ बुज्झइ, आगम मुझइ, धम्म झाणि नितु लीणो ।। (125) षट्पद
इस कृति में इस छन्द के 10 पद्य प्राप्त होते हैं । इस छन्द का अपर नाम छप्पय भी हैं । इसके छह चरणों में से चार चरण रोला के और दो चरण उल्लाला के रहते हैं । पहले चार चरण में 24-24 मात्राएँ और दो चरणों में 28-28 मात्राएँ होती हैं । कुल 152 मात्रा का षट्पद छन्द होता है । यथा
"जित सुभट बलवंड जिनिहि गज सिंह नवाइय । जित्त दइत्त परचंड लोय जिनि कुममहि लाइय । जित्त देव बलिभद्र धारि बहु रूप दिखालिय । जित दुट्ठ निजंच घालि लहु वणखंड जालिय ।
अस्सप्यत्ति गजपति नरप्पति भूपत्तिय भूरहिय भरिय ।
ने छलिय अछल टालिय अटल मयण नृपति परपंचु करि ।। (52) दोहा
उक्त रचना में 27 दोहा छंद है। यह विषम मात्रिक छन्द है । इसके प्रथम चरण में 13 और द्वितीय चरण में 11 मात्राएं होती हैं । तृतीय और चतुर्थ चरण में मात्रा का क्रम पूर्वोक्त ही रहता है । प्राकृत पैगलम में दोहा छन्द के 23 भेद बतलाये गये हैं । यथा
"चलिउ विवेकु आनंदकरि धम्मप्पुरि सु पहुत्तु । परणाई संजम सिरी सुख भोगवइ बहुतु ।। (55)
1. प्राः पैं: पृ० 89 2. वही, पृ. 72