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मदनजुद्ध काव्य हुए सुना और देखा । बारहवे शकुन में, अत्यन्त धवल दो हाथियों को चिंघाड़ते हुए देखा । तेरहवें में, सुन्दर आम्र, नारंगी और पुष्पहार को देखा । इस प्रकार ये सभी शकुन आदिनाथ प्रभु की विजय को घोषित कर रहे हैं । ( 97-100 ) । अपशकुन
शकुन वर्णन के साथ ही कवि ने अपशक्नों का उल्लेख भी किया है । जब कोई भी व्यक्ति कार्य की सिद्धि हेतु घर से प्रस्थान करता है तब अपशकुन उसके कार्य की असिद्धि की सूचना प्रारम्भ में ही दे देते हैं । राजा मोह जब आदिनाथ प्रभु पर चढ़ाई करने हेतु प्रस्थान करता है तब कुछ अपशकुन हुए । कवि की दृष्टि में यह उसकी पराजय की घोषणा थी । ग़जा-मोह ने युद्ध भूमि में प्रयाण करते समय ग्यारह अपशकुनों को देखा । पहले अपशकुन में पत्ते और धूलभरी वायु उसके सामने गोलगोल चक्कर लगाने लगीं । दूसरे में. जल का भग़ हुआ घड़ा फूट गया । तीसरा, तराणी स्त्रियाँ रोने चिल्लाने लगीं । चौथा, विधवा स्त्री धौंकती हुई ज्वाला वाली अग्नि वहाँ ले आई । पाँचवाँ, मूंड, मुहाए हुए नकटे मनुष्य को देखा । छठवें में, स्वयं उसे छींक हो गई । सातवें में उसने तृण, तुष, चर्म, कपास एवं कोदों सहित गुड़ को देखा । आठवें में, भृगाली को फुक्कारते हुए देखा । नौवें में, माला के द्वारा बंधे हुए नायक और स्त्री को घिसटते हुए देखा । दसवें में, बांबी के ऊपर काले विषधर को मरते हुए अपने फण को पटझते देखा : बारह में, सूखे वृक्ष पर चढ़कर दाहिनी लरफ बिल्ली को बोलते हुए सुना । किन्तु उस अभिमानी राजा मोह ने इन अपशकुनों को कोई महत्त्व नहीं दिया (89-92 )।
इस प्रकार महाकवि बूचराज द्वारा प्रणीत मयणजुद्ध काव्य अपभ्रंश साहित्य और हिन्दी-साहित्य की सन्धि बेला में रचित एक अद्वितीय रचना है, जो दर्शन, साहित्य, संस्कृति एवं भाषा की दृष्टि से एक उपयोगी काव्य रचना है ।
महाजन टोली नं 2 आरा ( बिहार ) 802307
श्रद्धावनत विद्यावती जैन