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मदनजुद्ध काध्य उल्लेख हुए हैं, जो एक और श्रुनि-मधुर और ग्समन कर देने हैं. ना दुसरी आर कर्णकटु और नोक्षण भी । श्रुनि-मधुर वाद्यों में से वीणा ( 37/3 ). शंख ( 9773), मिरदंग ( 9713 ) दुन्दुभि ( 13515 ) झल्लार ( 97/3 ) आदि नथा दुसरे प्रकार के वायों में नूरी ( 97/3 ). भरी ( 9773), पटह {57/3), नफीरी ! 1342 ) आदि का सुन्दर वर्णन गया किया है । ऋतु-वर्णन
ऋतु वाणन में कवि ने वसन्त ऋतु का बड़ा ही मनोहारी एवं आह्लादकारी वर्णन किया हैं । भारतीय वाङ्मय में वसन्त ऋतु का पड् अनुगों का राजा माना या है, क्योंकि इस ऋतु मे सम्पूर्ण प्रकृति और मानव उल्लास और उन्माद से भर उठते हैं । कवि ने उन्हीं भावों का उद्भावन उक्त प्रसंगों में किया है ।
कवि के वर्णनानुसार वसन्त-ऋतु के आगमन से समस्त प्रकृति हरी-भरी हो गई । कुंद-पुण्य प्रफुल्लित हो उठे । सुवासित मलय-पवन प्रसारित होने लगी । आप्न वृक्षों पर कोयत्त मधुर स्वर में कुंजन करने लगी । केतकी पुष्पों पर भ्रमर एक स्वर एवं लय में रुण-झुण-रुण-झुण की ध्वनि करने लगे । पुरुष और नारियां भी वसन्त के आगमन उल्लास से उल्लसित हो गए । नारियों ने विविध रीतियों से अपनाअपना श्रृंगार किया और आनन्द से प्रपूरित होकर वे मधुर गीत गाने लगी और वीणा बजाने लगी ( 37-44 ) | अस्त्र-शस्त्र
कवि बूचराज ने अपने युद्ध वर्णन प्रसगों में प्रायः उन्हीं शस्त्र-अस्त्रों का प्रयोग किया है जो पृथिवीराजरासो आदि वीर-काव्यों में उपलब्ध होते हैं । जैसे
वज्रदण्ड ( 114/1), गोला (130/1) कुदाल (126/3), खड्ग ( 130/2 ) करवाल ( 76/३ ) धनुषवाण ( 45/3 ) भाला (81/3 ), कुंत, कृपाण ( 45/5 ), कुहाड (79/1) कोवंड ( 45/3 ), पणच ( 45/3 )। जैनेतर-सन्दर्भ
कवि खूधराज के वर्णन प्रसंगों का अध्ययन करने से यह विदित होता है कि वह जैनधर्म के अध्येता ही नहीं थे अपितु जैनेतर धर्म, दर्शन, पुराण और आख्यानों के भी मर्मज्ञ ज्ञाता थे • उन्होंने 'मदन' के वर्णन प्रसंग में जमदाग्रि ऋषि, विश्वामित्र ऋषि, ऋषि गौतम. अहल्या, इन्द्र, ब्रह्मा, विघ्ना, शिवपार्वती, कृष्ण-गोपी एवं रावण आदि के कथानक सृन रूप में व्यक्त किए हैं। साथ ही उन्होंने अन्य मनों के संन्यासी. काली उपासक, भस्म लगाने वाले जोगी, जटाधारी यनि, भगवा वस्त्रधारी. विदादी-साधु, दरवेस, पुण्डरीक ऋषि ( 46, 47. 48, 47 ) आदि की भी चर्चा