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मदनजुद्ध काव्य मात्रिक हैं । इसमें 29 वस्तु, 27 दोहा, 22 पद्धडी, 13 पाथड़ी, 12 मडिल्ल, 11 गाथा, 11 रंगिक्का, 10 षट्पद..7 गीता, 4 रोड, 4 चउपइया, 4 एकावली
और 4 आभानक छन्द हैं । शार्दूलविक्रीडित छन्द
यह वर्णिक छन्द है । इसके प्रत्येक चरण में मगण, मगण, जगण. सगण, दो नगण और एक गुरु क्रमशः होता है लथा 12 वर्षों पर यति होती है । कवि ने इसको नाटक-छन्द भी कहा हैं । छन्दशास्त्र में ताटंक एक मात्रिक छन्द है । उसमें 30 यात्राएं होती हैं, तथा 16 और 14 मात्राओं पर यति होती है और चरणान्त में मगण अवश्य होता है । परन्तु उक्त काव्य ग्रन्थ में उल्लिखित ताटंक छन्द में मात्राओं की संख्या तो छन्दशास्त्र के ताटंक छन्द के अनुकूल है किन्तु चरणान्त में मगण नहीं है । इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने ताटक शब्द का प्रयोग श्लिष्ट अर्थ में किया है, जिसका दूसरा अर्थ कर्णाभूषण भी होता है । शार्दूलविक्रीड़ित स्वयं भी कर्ण को आनन्द प्रदान करने वाला छन्द है । इसीलिए कवि ने कदाचित् इसको नाटक कहा हो ? मयणजुद्ध में उल्लिखित यह छन्द शार्दूलविक्रीड़ित ही है । कवि ने वर्णिक छन्द के रूप में एकमात्र इसी छन्द का प्रयोग किया है जैसे
"जो सञ्चट्ठ विमाण हुति चविओ तिण्णाण-चितिरे ।
उवण्णो मरुदेवि कुक्खि रयणो इक्खाक कुल्मंडणो ।। वस्तु-छंद
यह विषम मात्रिक छन्द है । महाकवि स्वयम्भू ने इसे मिश्र छन्द माना है । इसमें नौ चरण अथवा पाँच पदियाँ होती हैं । इसके प्रथम चरण में 15, द्वितीय चरण में 12, तृतीय चरण में 15, चतुर्थ चरण में 11 और पंचम चरण में 15 मात्राएं होती हैं एवं अन्त में दोहा छन्द की योजना रहती हैं । दोहा छन्द के चार चरणों को मिलाकर वस्तु छन्द के नौ चरण होते हैं । इसका दूसरा नाम रड्डा भी है । यथा
"फिरिउ मनमथ जित्ति सह देस । नट भाट जय-जय करहि पेसाच गंधन गावहिं। बहु खिल्लिय दुट्ठ मनि कुजस परह गढमहि बजावहि | माया करिउ वधावणउ मोह रंजिउ चित्तु । सव्यहं इच्छा पुत्रिया धरि आयउ जिणि पुत्तु ।। (57)
कवि बूचराज ने वस्तु-छंद का प्रयोग सर्वाधिक किया है । प्रतीत होता है कि यह छन्द उक्त कृति के वर्णन प्रसंगों के लिए अनुकूल रहा होगा इसलिए इसका प्रचुर प्रयोग किया गया है। । स्वयम्भूछन्दल. पृ० 572. वही