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प्रस्तावना
सम्पूर्णता से काव्य का संगीत-तत्व स्फूर्त होता है । अतएव काव्य के लिए छन्द की नितान्त आवश्यकता है ।
कविना के अन्त में सन्निहित भावधाराओं की अभिव्यक्ति लयात्मक स्वर प्रधान छन्द से ही हो सकती हैं । छन्द के बिना काथ्य के रागात्मक तत्त्व की सुरक्षा नहीं हो मकी । क्योंकि छन्दरूपी दो किनारों के बीच प्रवाहित भाव-धारा में ही शन्द नाल और लय से युक्त होकर नर्तन करने हा आगे बढ़ते हैं।
- मयणजुद्ध की रचना अपभ्रंश-चरित काव्यो की शैली पर आधारित है । उसमें अपभ्रंश चरित-काव्यों की तरह ही छन्दों की विविधता, विचित्रता, और बाहुल्य देखने को मिलता है । उक्त काव्य-कृति अपभ्रंश और हिन्दी के बीच की कड़ी है । अतएव अपभ्रंश की सभी विशेषताओं को अपने में सैंजोए हुए है ।
प्रस्तुत कृति को कवि बूचराज ने "मयणजुद्ध" कहा है । प्रन्थ के आदि और अन्त में कवि ने इसका उल्लेख किया है । यथा..... __ "जिणवर बागवाणी पणावउँ सह भत्ति देह जग जणणी ।
वणणउं सुमयणजुद्ध किम जित्तिउ देव रिसहेसु' । तिसि दिनि वल्ल पसंठियउ मदनजुद्ध सविसेसु' ।।
यह रचना अन्य चरित-काव्यों से भिन्न है । इसमें चरित-नायक का वर्णन उस प्रकार उपलब्ध नहीं होता जिस प्रकार वह चरित्र-ग्रन्थों में गुम्फित रहता है । इसका घटनाचक्र तो भावात्मक और कल्पित है । इसकी रचना 159 पद्यों में विस्तृत हुई है, जिसमें अनेक छन्द प्रयुक्त हुए हैं । उसमें वस्तु, गाथा, मडिल्ल, षट्पद, रोड, पद्धडी, रंगिक्का, पाथडी, आभानक और उपइया प्रमुख हैं । छन्दों की विविधता के कारण काव्य में माधुर्य और सरसता अक्षुण्ण रूप से व्याप्त है तथा उसका गेयात्मक रूप भी सुरक्षित है । ग्रन्थ में जिस प्रकार बदल-बदल कर छन्दों की योजना की गई है, उस दृष्टि से इस रचना को यदि रासक कहा जाये तो कोई अत्यक्ति न होगी । कन्नि स्वयंभू के अनुसार घत्ता, छकुनिका, पद्धडिया तथा अन्य सुन्दर छन्दों के रूप में रचा गया ग़सा-बन्ध काव्य लोगों के मन को प्रसन्न करने वाला होता है ।
मयणजुद्ध काव्य पर ये लक्षण ज्यों के त्यों घटिन होते हैं । मयण-जुद्ध की रचना पद्यों में हुई है । इसमें कुल 159 पद्य हैं, जिनमें 14 प्रकार के छन्दों के प्रयोग किए गए हैं । ग्रन्थ में एकमात्र वर्णिक छन्द-शार्दूलविक्रीड़ित का प्रयोग किया गया है । मंगलाचरण शार्दूलविक्रीड़ित-छन्द में किया गया है, बाकी के अन्य सभी छन्द
1. म्यगजुद्ध, पद्य 2 2. मही, पy:594 3. स्वयंभू-छन्दस. 149