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लेखकीय गया है। इस ग्रन्थ के अध्ययन करने के अनन्तर निम्नांकित बिन्दु स्पष्ट होते हैं- १. लोकप्रकाश ग्रन्थ में तत्त्वमीमांसीय निरूपण की प्रधानता है। आचारमीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा का निरूपण गौण रूप से हुआ है। २. तत्त्वमीमांसीय दृष्टि से धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल एवं जीव द्रव्यों का विवेचन प्रमुख लक्ष्य रहा है। जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आसव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन नव तत्त्वों में से अन्तिम सात तत्त्वों का प्रतिपादन लोकप्रकाश ग्रन्थ में स्थान नहीं ले पाया है। ३. " जीव के स्वरूप एवं विभिन्न द्वारों से विभिन्न जीवों की अवस्थाओं का निरूपण इस ग्रन्थ में जिस व्यवस्थित रीति से उपलब्ध होता है, वैसा अन्यत्र प्राप्त नहीं होता। लोकप्रकाश एक विद्वत्तापूर्ण प्रौढ़ कृति है, जिसमें आगमिक आधारों पर जीवादि द्रव्यों का तात्त्विक विश्लेषण एवं निरूपण हुआ है।
प्रसतुत ग्रन्थ में कई विषयों की समस्या के समाधान के लिए श्रद्धेय श्री प्रेममुनि जी म.सा., प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनि जी म.सा. एवं श्री सुमतिमुनि जी म.सा. का पूर्ण सहयोग एवं आशीर्वाद रहा।
____ अच्छा कार्य तभी सम्भव है जब उसका निर्देशक कुशल एवं निपुण हो। मेरे इस शोधकार्य के निर्देशक गुरुवर्य प्रो. धर्मचन्द जी जैन के सहयोग, स्नेह एवं आशीर्वाद के विषय में जितना कहा जाय उतना कम है। आपका पुत्रीवत् प्रेम और स्नेह-सम्बल ने मुझे सदैव प्रेरित एवं उत्साहित किया है।
संस्कृत विभाग के प्रो. श्रीकृष्ण जी शर्मा, प्रो. नरेन्द्र जी अवस्थी, प्रो. प्रभावती जी चौधरी, प्रो. सत्यप्रकाश जी दुबे, डॉ. सरोज जी कौशल एवं अन्य समस्त गुरुजनों का मुझ पर सदैव आशीर्वाद रहा।
इस शोध कार्य के लिए मैंने जोधपुर के जैन विद्वान् श्री सम्पतराज जी डोसी, आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड, जोधपुर के रजिस्ट्रार श्रीमान् धर्मचन्द जी जैन, मुम्बई के उद्योगपति स्वाध्यायी श्रावक श्री विमल जी डागा, जयनारायण व्यास विश्वविविद्यालय के दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राजकुमार जी छाबड़ा, अहमदाबाद के श्री उत्तमचन्द जी मेहता और मेरी अग्रजा डॉ. श्वेता जैन से भिन्न-भिन्न विषयों पर चर्चा की, जिससे मेरा शोध कार्य सरल और सुगम बन सका।
विश्वविद्यालय में संचालित केन्द्रीय पुस्तकालय, सेवा मन्दिर पुस्तकालय-जोधपुर, विजय ज्ञान भण्डार-ब्यावर, श्री कैलाशसागर सूरि ज्ञान मन्दिर-गांधी नगर कोबा एवं श्री वर्द्धमान स्थानकवासी महावीर भवन तथा पावटा पुस्तकालय की पुस्तकों के सहयोग से मेरे शोध प्रबन्ध का कार्य सुचारू रूप से चल सका।
परिवार के सहयोग बिना दीर्घकालिक कार्य पूर्ण होना सम्भव नहीं है। मेरे इस शोधकार्य में