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कातन्त्रव्याकरणम् के निषेध की आवश्यकता होती है, जिसे दोनों व्याकरणों में निर्दिष्ट किया गया है । पाणिनि का सूत्र है - "नोदात्तोपदेशस्य मान्तस्यानाचमे:' (अ० ७।३।३४) । अभिधानबल से आङ्-उपसर्गपूर्वक ही चम धातु से उपधावृद्धि होती है - आचामि, आचामः । ननिर्दिष्ट विधि के अनित्य होने से 'विश्राम:' में उपधावृद्धि का निषेध नहीं होता तथा 'उपरमः' में निषेध उपपन्न होता है ।
[विशेष वचन] १. अभिधानाद् आपूर्वश्चमिः । आचामि, वाम:, कामः, आचामः (दु० वृ०)। २. वो श्रमेना निर्दिष्टस्यानित्यत्वाद् विश्रामः (दु० वृ०) । ३. सहशब्दो विद्यमानार्थः (दु० टी०) । ४. इच्कार्यं नास्तीति मन्दमतिबोधनार्थमेवामन्तस्येति कैश्चित् पठ्यते (दु०टी०) । ५. वक्तव्यवादी कामिनङ् धात्वन्तरमिति न्याय्य: पक्षः (दु० टी०) । ६. न सूत्रकारसम्मतम् , नैतल्लक्षणं व्याकरणान्तरे दृश्यते (दु० टी०) । ७. अन्तग्रहणं स्पष्टार्थम् (दु० टी०) । ८. सहशब्दो विद्यमानवचनस्तुल्यप्रतियोगिवचनश्च (क० च०) । [रूपसिद्धि]
१. अशमि । अट् + शम् + अद्यतनी – इच् + त । 'शमु' (३।४२) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक प्रथम पुरुष-एकवचन 'त' प्रत्यय, “अड् धात्वादिस्तिन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु' (३।८।१६) से धातुपूर्व अडागम, इच् प्रत्यय, “अस्योपधाया दीर्घो०' (३।६।५) सूत्र से प्राप्त दीर्घ का प्रकृत सूत्र से निषेध तथा “इचस्तलोपः" (३।४।३२) से 'त' प्रत्यय का लोप ।
२. अतमि । अट् + गम् + अद्यतनी – इच् । 'तनु विस्तारे' (७।१) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक प्रथमपुरुष-एकवचन 'त' प्रत्यय, धातुपूर्व अडागम, इच् प्रत्यय, प्राप्त दीर्घ का प्रकृत सूत्र से निषेध तथा 'त' प्रत्यय का लोप ।।८५८।
८५९. प्रत्ययलुकाञ्चानाम् [४।१।४] [सूत्रार्थ]
जिस प्रत्यय को निमित्त मानकर धातुघटित नकाररूप एकदेशं से यदि किसी अन्य एकदेश का लुक् हुआ हो तो उसी प्रत्यय के परवर्ती रहने पर प्राप्त होने वाला धातुसम्बन्धी कार्य नहीं होता है ।।८५९।