Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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श्री वीतरागाय नमः
श्रीमद् देवेन्द्रसूरि विरचित
शतक
पंचम कर्मग्रन्थ
इष्टदेव के नमस्कार पूर्वक ग्रन्थकार ग्रन्थ के वर्ण्य विषय का निर्देश करते हैं
नमिय जिणं धुवबंधोदयसत्ताधाइपुन्नपरियत्ता । सेयर चउहविवागा वुच्छ बन्धविह सामी य ॥१॥
शब्दार्थ - नमिय -- नमस्कार करके, जिणं - जिनेन्द्र देव को, धुवबंध - ध्रुवबंधी, उदय - ध्रुव उदयी, सत्ता- ध्रुव सत्ता, घाइघाति ( सर्वघाती, देशघाती), पुन-पुण्य प्रकृति, परियत्ता-परावर्तमान, सेयर प्रतिपक्ष सहित, चउह- -चार प्रकार से, विवागा विपाक दिखाने वाली, बुच्छं— कहूँगा, बंधविह-बंध के भेद, सामी --- स्वामी (बंध के स्वामी) य - उपशम श्रेणि, क्षपक श्रेणि ।
गाथार्थ - जिनेश्वर भगवान का नमस्कार करके ध्रुवबन्धी, ध्रुव उदयी, ध्रुव सत्ता, घाती, पुण्य और परावर्तमान तथा इनकी प्रतिपक्षी प्रकृतियों सहित तथा चार प्रकार से विपाक दिखाने वाली प्रकृतियों, बंधभेद, उनके स्वामी और उपशम श्र ेणि, क्षपक श्रं णि का वर्णन करूंगा ।
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