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18. आत्मा का तीसरा गुण कौनसा है और इसको रोकने वाले कर्म पुद्गल
कौनसे हैं? उ. आत्मा का तीसरा गुण है-आत्मिक सुख। इस गुण को रोकने वाले कर्म
पुद्गल का नाम है वेदनीय कर्म। जीव का स्वभाव अव्याबाध है, वेदनीय कर्म उसकी घात कर देता है। इस कर्म के उदय से जीव पौद्गलिक सुख
दुःख रूप वेदना का अनुभव करता है। 19. आत्मा का चौथा गुण कौनसा है और उसको विकृत करने वाले कर्म का
क्या नाम है?
आत्मा का चौथा गुण है—सम्यक् श्रद्धा। आत्मा के इस गुण को बिगाड़ने . वाले कर्म पुद्गल का नाम है-मोहनीय कर्म। यह आत्मा को मूर्च्छित एवं
विकृत करता है। 20. आत्मा का पांचवां गुण कौनसा है और उस गुण को रोकने वाले कर्म का
क्या नाम है? उ. आत्मा का पांचवां गुण है-अटल-अवगाहन। आत्मा की इस शाश्वत
स्थिरता को रोकने वाले कर्म का नाम है—आयुष्य कर्म। 21. आत्मा का छठा गुण कौनसा है और उसको रोकने वाले कर्म का क्या नाम
है? उ. आत्मा का छठा गुण है-अमूर्तिकपन और इस गुण को रोकने वाले कर्म
का नाम है—नाम कर्म। 22. आत्मा का सातवां गुण कौनसा है? उ. आत्मा का सातवां गुण है-अगुरुलघुपन (न हल्का न भारी)। आत्मा के
इस गुण को रोकने वाले कर्म का नाम है—गोत्र कर्म। गोत्र कर्म का उदय जीव के अच्छी या बुरी दृष्टि से देखे जाने में निमित्त बनता है। यह जीव
की व्यक्तित्व विषयक विशिष्टता अथवा अविशिष्टता का हेतुभूत है। 23. आत्मा का आठवां गुण कौनसा है और उसे रोकने वाले कर्म पुद्गल का
क्या नाम है? उ. आत्मा का आठवां गुण है-लब्धि (अनन्त शक्ति)। आत्मा के इस गुण
को प्रकट होने में अवरोध डालने वाले पुद्गल का नाम है—अन्तराय कर्म। आत्मा की शक्ति व पौद्गलिक वस्तु की उपलब्धि में बाधा पहुंचाने वाला, विघ्न डालने वाला अन्तराय कर्म है। इस कर्म के उदय से आत्मशक्ति का प्रतिघात होता है।
कर्म-दर्शन 17