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क्र० स०
नाम
२५- संश्लेप (बद्धता) रूप सयोग की उपचरितता का ग्राह्य अर्थ
२६- दो आदि वस्तुओ पर आधारित सयोग, निमित्तनैमित्तिक व आधारांधेय आदि सम्बन्ध वास्तविक हैं कल्पनामात्र नही हैं।
२७- निश्चय और व्यवहार के रूप २८- द्रव्यानुयोग की व्यवस्था मे निश्चय और व्यवहार
२६- करणानुयोग की व्यवस्था मे निश्चय और व्यवहार
३०- चरणानुयोग की व्यवस्था मे निश्चय और व्यवहार
१- जीव की भाववती और क्रियावती शक्तियाँ तथा उनके अर्थ
२- पुरुषार्थ के विविध रूप
३१- तत्त्वार्थसूत्र अ० १० सू० १ के आधार पर निमित्त की कार्यकारिता का समर्थन
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