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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
કાર્તિક
दीक्षायें, सुलसा, श्रेणिक, अभयकुमार आदि का
मेघकुमार, नन्दीपेण आदि की गृहस्थ-धर्म-स्वीकार, वर्षावास राजगृह में
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१४ चौदहवां वर्ष (वि० पृ० ४९९ - ४९८ )
(२) वर्षाकाल के बाद विदेह की तरफ विहार, ब्राह्मणकुण्ड में ऋषभदत्त आदि की दीक्षायें । वर्षावास वैशाली में ।
१५ पंद्रहवां वर्ष (वि० पृ० ४९८-४९७ )
(३) चातुर्मास्य के उतरने पर वत्सभूमि की तरफ बिहार | कौशाम्बी के उद्यान में जयन्ती की धर्मचर्चा और दीक्षा | वहां से कोशल की तरफ प्रयाण | श्रावस्ती में सुमनोभद, सुप्रतिष्ठ आदि की दाक्षायें । विदेह को विहार । वाणिज्यग्राम में गाथापति आनन्द और शिवानन्दा का निर्मन्थप्रवचन स्वीकार और श्राद्धधर्म के द्वादश व्रतों का लेना । वर्षावास वाणिज्यग्राम में ।
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१६ सालहवां वर्ष (वि० पृ० ४९७ - ४९६ )
(४) वाणिज्यग्राम से मगध की तरफ बिहार । राजगृह में समवसरण | कालविषयक प्ररूपणा | धन्य, शालिभद्र आदि की दीक्षायें । वर्षावास राजगृह में I १७ सत्रहवां वर्ष (वि० पू० ४९६-४९५ )
(५) वर्षाऋतु के बाद चम्पा की तरफ विहार | चम्पा में महचन्द्र आदि की दीक्षायें । कामदेव आदि का गृहस्थ धर्म स्वीकार । उदायन के मानसिक अभिप्राय को जान कर वीतभय की तरफ बिहार | उदायन की दीक्षा । पीछा विदेह की तरफ विहार । बीच में भूख प्यास से श्रमणों को कष्ट । वर्षावास वाणिज्यग्राम में । १८ अठारहवां वर्ष ( वि० पृ० ४९५ - ४९४ )
(६) बनारस, आलभिकादि नगरों में होते हुए राजगृह की तरफ प्रयाण । बनारस में चुलनीपिता और सुरादेव का निर्ग्रन्थप्रवचन - स्वीकार, आलभिया में पोग्गलपरिव्राजक–प्रतिबोध, चुल्लशतक का श्रमणोपासक होना, राजगृह में समवसरण, मंकाती आदि अनेक गृहस्थों की दीक्षायें । वर्षावास राजगृह में I
१९ उन्नीसवां वर्ष (वि० पू०
४९४ - ४९३ )
(७) मगधभूमि में ही विहार, आर्द्रकमुनि के सामने गोशालक के महावीर पर आक्षेप, राजगृह में अभयकुमार, जालि, दीर्घसेनादि २१ राजकुमारों और नन्दादि १३ श्रेणिक की रानियों की दीक्षायें । वर्षावास राजगृह में ।
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