Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५3 ३४९ શ્રી જીવસ્વામિ-દ્વાત્રિશિકા वुत्ता उग्गविसाहिया य विसया पाणा तहा णस्सरा । संसारस्स सुहं ण दीहठिइयं मुत्तीइ तं तारिसं ॥ अत्था अप्पहिएमु हेउसु विहेया भव्वभद्दप्पया । एवं पावणदेसणं पथुणिमो जीवंतसामिप्पहुं ॥ २० ॥ सच्चाणंदगिहाणसुद्धचरणं पुण्गप्पसंतिप्पयं । एवं बोहगया हवंति यमिणा चायत्थिणो चक्कियो ।। णो चक्की समणो हमुत्तरमिणं जुग्गं पभासंति ते । एवं पावणदेसणं पथुणिमो जीवंतसामिप्पहुं ॥ २१ ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ वासाचउमासीओ-बायालीसं च संजमदिणाओ ।। जेणं विहिणा विहिया-तं वीरपहुं सया वंदे ॥ २२ ॥ अट्ठण्हं सुमिणाणं-परूवियं णिवइपुण्णपालस्स ॥ जेणं च जहत्थफलं-तं वीरपहुं सया वंदे ॥ २३ ॥ एअस पेमबंधो-झिज्जइ इय देवसम्मबोहढें ॥ गोयमसामी जेणं-पट्ठविओ तं पहुं वंदे ।। २४ ॥ गिहवासे वरिसाइं-तीसं पक्खाहिए य स य ।। जाव दुवालसवरिसे-जस्स य छउमत्थपरियाओ ।। २५ ॥ तेरसपक्खोगाई-तीसं वासाइ केवलित्तेणं ॥ विहरित्ता सव्वाउं-बावत्तरिवासपरिमाणं ॥ २६ ॥ पालित्ताऽऽइमपक्खे कत्तिअमासे य चरिमजामद्धे ॥ साइपवरणक्खत्ते-कयपज्जंकासणो सामी ॥ २७ ॥ जीवियवड्ढणपण्हे-अवि सक्का णो कयावि वडढेउं ॥ जिणया आउयकम्मं-इय कहिऊणं समाहाणं ॥ २८ ॥ जा सोलसपहराई-दच्चंतिमदेसणं भवियणाणं ॥ किच्चा जोगनिरोहं-सेलेसीभावसंपण्णो ॥ २९ ॥ For Private And Personal Use Only

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