Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 228
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- -रात ३४८ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ बासीइदिणाई जा-तत्थ ठियं वंदिऊग सकिंदे ॥ हरिणेगमेसितियसं-कम्मबलच्छेरगं णच्चा ॥ १० ॥ आणवए तेण तओ-आसिणबहुले य तेरसीदियहे ॥ काउं गभविणिमयं-तिसूलाकुच्छिसि साहरिओ ॥ ११ ॥ जो चित्तसुक्कपक्खे-जाओ मुहतेरसीदिणे पर्वर ।। दिक्वा जेणं गहिया-मग्गसिरे बहुलदसमीए. ॥ १२ ॥ बारसवासाइ तहा-तेरसपक्खे सुराइउवसग्गे ॥ सहिअखमाभावेणं--चरिअ तवं भियग्गामे ॥ १३ ॥ गोदोहिआसणेणं-पहरतिगे उज्जुवालियातिर ।। हत्थुत्तरासुरिक्वे-णिज्जटुप्पमोएणं ॥ १४ ॥ झाणंतरियासमए-जेणं वइसाहसुद्धदसमीए ॥ लद्धं केवलनाणं-तं वीरपहुं सया वंदे ॥ १५ ॥ तह मझिमपावाए-केवलिणिक्कारसीइ जेण वरं । महसेणवणे तित्थं-पट्टियं जोगखेमदयं ॥ १६ ॥ सिरिइंदभूइपमुहा-जेणं संदिक्विया सपरिवारा ।। अइसयलद्रिसमेयं तं वीरपहुं सया वंदे ॥ १७ ॥ ॥ शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ।। होज्जा दुक्खपरंपरा भवियगा ! संजोगभावा भवे । कायवो णियमा तओ सुमइणा संजोगचाओ इमो ॥ अप्पा वो परिबोहदंसणजुओ दव्वत्तधम्मा धुवो । एवं पावणदेसणं पथुणिमो जीवंतसामिप्पहुं ॥ १८ ॥ सेसे दवकुडुंबगेहपमुहे सिग्धं पयत्थेऽसुहे । चिच्चा जति सरंति णो परभवे भूयंगणाई णरा ॥ बुझेवं परिहंतु निम्मलयरे सद्धम्मजोगुज्जमा । एवं पावणदेसणं पथुणिमो जीवंतसामिप्पहुं ॥ १९ ॥ For Private And Personal Use Only

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