Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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श्री मधुमतीमंडन श्री जीवत्स्वामि
द्वात्रिांशका कर्ता- आचार्य महाराज श्रामद् विजयपद्मसूरिजी
॥ आर्यावृत्तम् ॥ थोऊणं पासपहुं-पहावपुण्णं च णेमिसूरिपयं ॥ जीवंतसामिवीरं-थोसामि ठियं महुमईए ॥ १॥ सुरनयरिब्व महुमई-होत्था परमालएहि धम्मरया ॥ सुयणरयणपडिपुण्णा-भव्वजिणाययणपरिसोहा ॥ २ ॥ णिवणंदिवद्धणेणं-अडणवइसमाउएण जिद्वेणं ॥ लहुबंधवगुणणेहा-सगकरदेहप्पमाणेणं ॥ ३ ॥ जीवंते य भयंते-कारविया जेण दुण्णि पडिमाओ ॥ सोहइ एगा एसा-अण्णा मरुदेसम झंमि ॥ ४ ॥ एत्ताहे हेउत्तो-जीवियसामिप्पहाणणामेणं ॥ विइया ते पडिमाओ-फुरंतमाहप्पकलियाओ ॥ ५ ॥ सक्खं सासणणाहो-अम्हागं देइ देसणं विसयं ॥ जं दद्वणं भावो-इय जायइ पासगस्स मणे ॥ ६ ॥ दव्वजिणो जे वीरो-वीसायरकालमाणदिव्वसुहं ॥ पुप्फुत्तरे विमाणे-पाणयकप्पट्ठिए पवरे ॥ ७ ॥ अणुहविय सुक्लपक्वे-आसाढे छट्वासरे धण्णे ।। तम्हा चुओ समाणो-तिण्णाणणिबद्धजिणणामो ॥ ८ ॥ माहणकुंडग्गामे-सयवरिसाउस्स उसहदत्तस्स ॥ गिहिणी देवाणंदा-तीए कुच्छिसि आयाओ ॥ ९॥ ,
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