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भगवान महावीर का दिव्य जीवन
लेखक ---- न्यायतीर्थ, विद्याभूषण
पं० ईश्वरलाल जैन, विशारद, हिन्दीरत्न. महात्माओं के जीवन का प्रत्येक क्षण बोधदायक होता है, प्रत्येक घटना कोई न कोई विशिष्टता-महत्त्व रखती है और उनका प्रत्येक कार्य शिक्षाप्रद होता है।
महावीर भगवान का दिव्य जीवन सम्पूर्ण आदर्शों से परिपूर्ण था। वे अहिंसक, निर्भीक, साहसी और धैर्य के भण्डार थे। भगवान का सम्पूर्ण चरित्र संसार को विश्व-प्रेम का सन्देश दे रहा है। हम श्री वीर की किसी भी घटना को लेकर विचार करें, वह हमारे लिये मार्गदर्शक ही नहीं, बल्कि कल्याणकारक भी होगी।
उन्होंने त्यागमय जीवन में ही हमारे सामने आदर्श नहीं रखे, बल्कि गृहस्थजीवन में भी हमें शिक्षा दी, केवल इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने अपने बाल्यकाल और गर्भावस्था में भी हमारे लिये आदर्श कायम किया । " मेरी जननी माता को किसी प्रकार का कष्ट न हो,' केवल इस मातृभक्ति से प्रेरित होकर, वे गर्भ में योगी की तरह स्थिर हो गये। कुछ समय के बाद उसका उल्टा परिणाम देखा, माता को अपने गर्भ न होने का सन्देह होने लगा, और वह दुःखित होने लगी । भगवान् महावीरने गर्भ में ही इस पर विचार किया, " अहो ! माता-पिता का इतना मोह ! उन्होंने मुझे अभी तक प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं, तो भी वे इतना शोक करते हैं तो जब मैं दीक्षा ग्रहण करुंगा तब न मालूम उनकी क्या दशा होगी?' यह विचार कर उन्होंने अभिग्रह किया कि, "मातापिता की जीवितावस्था तक मैं दीक्षा न लंगा।" गर्भ में हिलने की क्रिया छोड़ना और भविष्य के लिये अभिग्रह लेना दोनों मातृभक्ति का बोध देनेवाली घटनायें हैं।
महावीर सच्चे अहिंसक, वीर और निर्भीक थे । महावीर भगवान के बाव्य-काल में ही हम यह सब कुछ अच्छी तरह देख सकते हैं
" होनहार बिरवान के होत चीकने पात" की कहावत के अनुसार त्रिशलानन्दन महावीर बाल्य-काल से ही प्रतिभाशाली थे। सामान्य मनुष्य नहीं, बल्कि देवताओं ने उनको परीक्षा की, जिस कसोटी पर वे पूरे वीर, धोर, गम्भीर उतरे ।
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