Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 160
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૨૫૦ www.kobatirth.org શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ કાર્તિક जरिये आपने यह घोषणा की कि इस लोक में केवल सात द्वीप और सात समुद्र ही हैं, पर जब भगवान् महावीर से भेंट हुई और उन्होंने उस शिवराजर्षि को लोक का वास्तविक स्वरूप समझाया तो उन्होंने अपनी उस संकीर्ण वृत्ति और मिथ्या कल्पना का त्याग कर, भगवान् महावीर के परम भक्त बन कर उनसे भागवती जैन दीक्षा स्वीकार कर, महावीर के चरण-कमलों में सदा ध्यान रख जैनधर्म का जोरों से प्रचार किया । ( श्री भगवती सूत्र ) महावीर के पूर्ण भक्त नरेश मोक्षदात्री जैन दीक्षा का (१८) महाराजा वीराङ्ग और (१९) महाराजा वीरजस भी भगवान् । इन दोनों नृपतियों ने भगवान् महावीर के शासन में शरण ले अपना कल्याण किया था । 1627 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) नागहस्तीपुर का राजा अदितशत्रु (२५) ऋषभपुर का राजा धनबाहु (२६) वीरपुर नगर का राजा कृष्णमित्र - (२७) विजयपुर नगर का राजा वासवदत्त (२८) सौगन्धिका नगरी का राजा अप्रतिहत(२९) कनकपुर का राजा प्रियचंद्र - (३०) महापुर का राजा बल(३१) सुघोष नगर का राजा अर्जुन (३२) चम्पा नगरी का राजा दत्त- और (३३) साकेत नगर का राजा मित्रानन्दी राणियां और ये खुद भगवान् महावीर के परम भक्त थे, (२०) मथुरा नगरी का राजा नमि (२१) कलिंग ते महाराजा करकंडु (२२) पांचाल देश के अधिपति राजा दुमाई और (२३) गांधार नरेश महारज निम्बई; ये चारों भूपति भगवान् महावीर के परम भक्त थे | अध्यात्मज्ञान के अभ्यास की उच्च श्रेणी पर आरूढ होते ही इन चारों को आत्मज्ञान हुआ। ये प्रतिबुद्धि के नाम से जैनशासन में प्रसिद्ध हैं । ( श्री उत्तराध्यायन सूत्र, अ. १८ ) - For Private And Personal Use Only 19 (श्री स्थानांग सूत्र ) - इन दशों राजाओं की इतना ही नहीं पर पूर्वोक्त

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