Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 161
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯૯૩ २८१ ભગવાન મહાવીર કે ભક્ત જૈન ભૂપતિ राजाओं के दश पुत्रों ने भी राजऋद्धि और युवक-बय में अन्तःपुरादि के सांसारिक भौतिक सुखों का परित्याग कर भगवान् महावीर के पास आ दीक्षा ली थी । राजपुत्रों के क्रमश: नाम ये हैं : १. सुबाह २. भद्रनन्दी ३. सुजात ४. सुवासव ५. महचन्द्र ६. वैश्रमण ७. महाबल और १० वरदत्त ८. भद्रानन्दी ९. महिचन्द्र ---- (विपाक सूत्र, श्रु. २, अ. एक से दश) (३४) महाराजा हस्तिपाल---आप पावापुरी नगरी के शासक थे । आपके अत्याग्रह से भगवान् महावीर ने अपना अंतिम चतुर्मास पावापुरी में किया था और उसी चतुर्मास में आपका निर्वाण तथा भगवान् इन्द्रभूति (गौतम ) को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान् के शव के दाह स्थान पर उनकी स्मृति के लिए एक मनोहर और कीमती चैत्य भी इन्होंने बनवाया था । जो ओज तक विद्यमान है । इसका जीर्णोद्वार समय समय पर होता रहा है। फिर भी वहां खुदाई का काम कराने से इतनी बड़ी ईंटें निकली हैं जिन्हें विज्ञानवेत्ता २००० वर्षों से भी प्राचीन बताते हैं ---- ( कल्पसूत्र) इन ३४ नंबरों के अन्दर महाराजा चेटक के सामन्त १८ और उदाई के सामन्त १० यदि शामिल किये जायं तो भगवान् महावीर के भक्त राजाओं की संख्या ६२ हो सकती है। इनके अलावा भी काशी का शंखराजा, कपिलपुर का जयकेतु राजा आदि कई नरेश भगवान् महावीर के परम भक्त हुए हैं । पर लेख बढ जाने के भय से यहां उन सबका उल्लेख नहीं किया जाता है। केवल भगवान् महावीर की विद्यमानता में जो राजा उनके भक्त थे उन्हीं का उल्लेख इस छोटे से निबंध में किया है। ये राजा जैनी बनकर सर्वत्र जैन-धर्म का प्रचार करते थे तथा भगवान महावीर के निर्वाग के बाद भी जैनाचार्यों ने भारत और भारत के बाहिर अन्यान्य प्रदेशों में घूम कर जैन-धर्म का प्रचार करते हुए प्रायः १०० राजाओं को वीरशासन के पूर्ण भक्त बनाये थे । परन्तु इन सबका उल्लेख यहां हो सकना सम्भव नहीं अतः उनके लिए एक पृथक् निबन्ध की सूचना देता हुआ इसे यहीं समाप्त करता हूं। For Private And Personal Use Only

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