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ભગવાન મહાવીર કે ઉપસર્ગ
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"क्षमा वीरस्य भूपणम्” इस उक्ति का पालन करके भगवान् महावीर ने इस चण्डकौशिक के उपसर्ग से यह स्पष्ट करके दिखला दिया है कि क्रोध करनेवाले के सामने क्षमा करो। यदि महावीर भी चण्डकौशिक की तरह क्रोध करके उसको मारने के लिये दौडते अथवा अपने तेजोबल से उसे भस्म कर देते तो कदापि वह सिद्धि नहीं होती जो क्षमा के स्थिर भाव से हुई। संगमदेव का उपसर्ग:
एक समय भगवान् क्रमश: विहार करते हुए 'पेढाणा' ग्राम के समीप, एक वृक्ष पर दृष्टि जमा कर कायोत्सर्ग में खडे हो गये । उस समय इन्द्र ने अपनी सभा में की हुई उनके चरित्र बल की प्रशंसा संगम नामक देव को सहन न हुई। वह उसी समय उनको अपने पथ से भ्रष्ट करने के लिए मृत्युलोक में आया। उसने छः महीने तक महावीर के उपर ऐसे उपसर्गों की वर्षा की जिन्हें पढते हृदय कांप उठता है । सबसे पहले उसने भगवान महावीर के ऊपर भयंकर धूल की वर्षा की जिसके प्रताप से भगवान् का सारा शरीर रजो-मग्न हो गया, उनको श्वासोश्वास लेने में भी बड़ा संकट होने लगा, फिर भी दैहिक मोह से विरक्त हुए महावीर अपने लक्ष्य पर स्थिर रहे । जब संगम ने उनको चलित होते नहीं देखा तो उसने डांस, मच्छर, सांप और बिच्छू को उत्पन्न करके उनसे भगवान को कटवाया । महावीर रञ्च मात्र भी विचलित न हुए। इतना ही नहीं उनके हृदय में संगम के प्रति किंचित् मात्र भी क्रोध या द्वेष की मात्रा उत्पन्न न हुई । बस ! इसी महावीर की महावारता है, इसीसे महावीर क्षमा और दया की आदर्श मूर्ति हैं। संगम इतना ही करके चुप नहीं हुआ, उसने एक बडाभारी लोहे का गोला भगवान् के उपर फेंका, जिससे भगवान् उसके आधात से घुटने पर्यंत पृथ्वी के अन्दर घुस गये, फिर भी वे उसी तरह निश्चल रहे । तब संगम ने सोचा कि मनुष्य के अन्दर किसी न किसी तरह की कमजोरी अवश्य होता है, यदि वह प्रतिकूल उपसर्गे से विचलित नहीं होता है तो अनुकूल उपसर्गों से तो अवश्य विचलित हो ही जाता है, क्यों कि वासना, मोह, काम ये वस्तु संसार में ऐसी हैं जो बडे बडे योगियों को भी पथभ्रष्ट कर देती है। इसी बात को सोचकर संगम देव ने भगवान् महावीर के चारों तरफ कामोतेजक द्रव्यों के साधन उत्पन्न किये । उनके अन्दर अनेक सुन्दर रमणियों का आविर्भाव किया । वे भगवान् महावीर के सामने अनेक तरह के हाव भाव दिखाने लगी, किन्तु महावीर जानते थे कि इनसे आत्मा का पतन होने के सिवाय दूसरा मार्ग नहीं है। ऐसी अवस्था में कैसे सम्भव था कि महावीर उन क्षुद्र भोगों की तरफ अपने ध्यान को विचलित
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