________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भगवान् महावीर के भक्त जैन-भूपति
लेखक-मुनिराज श्री ज्ञानसुन्दरजी
या तो जैनधर्म राष्ट्रीय-धर्म है। क्योंकि जैनधर्म में जितने तीर्थकर हुए हैं वे सब के सब विशुद्ध क्षत्रिय वंश में ही पैदा हुए हैं, तथा उन तीर्थङ्करों के उपासक बडे बडे चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, मण्डलीक, महामण्डलीक आदि थे। उन्होंने जैन-धर्म को विश्वव्यापी धर्म बनाने में भगीरथ प्रयत्न किया, एवं इस कार्य में अच्छी सफलता भी हासिल की थी। आज पुरातत्त्वज्ञों की शोध एवं खोज से यही पता मिलता है कि एक समय क्या आर्य, और क्या अनार्य सभी देशों में सार्वभौम जैन-धर्म का प्रचुर प्रचार था। जिसके प्रमाण में जहां देखो वहीं जैन-धर्म के स्मारक-चिह्न आज भी बहुलता में भूगर्भ से उपलब्ध होते हैं। इन ऐतिहासिक साधनों पर विद्वानों की धारणा ही नहीं पर दृढ विश्वास भी है कि जैन-धर्म राष्ट्रीय एवं विश्वव्यापक धर्म है । यद्यपि इसका इतिहास अति विस्तृत है पर मैं तो आज अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर के उपासक जैन राजाओं का संक्षेप में परिचय करवाने को ही यह लघु लेख पाठकों की सेवा में रखता हूं।
(3) सम्राट् श्रेणिक (बिम्बिसार) ---- इन नरेश का जैसा वर्णन जैन-शास्त्रों में पाया जाता है वैसा बौद्ध पिटकों में भी नजर आता है, तथा ऐतिहासिक साधनों से भी इन भूपति का पता लगता है कि ये महाराजा श्रेणिक, नागवंशीय महाराजा प्रसन्नजित् के पुत्र और सम्राट् कोणिक ( अजातशत्रु ) के पिता थे । मगव को राजधानी राजगृह नगर के ये शासन कर्ता थे। आप बाल्यवय में ही नीतिकुशल, बीर, साहसी और सर्वगुण सम्पन्न थे। आप अपनी पूर्व अवस्था में बौद्ध-धर्मोपासक थे पर आपकी पमहिषो महाराणी चेलना, जो महाराजा चेटक की सात पुत्रियों में से एक थी, कट्टर जैन धर्मोपासिका थी। राजा बौद्ध, और राणी जैन इस प्रकार उभय दंपतो में धर्म-भेद के कारण पारस्परिक वादविवाद होता रहता था। बढ़ते बढते वह वादविवाद यहां तक बढा कि दोनों एक दूसरे के गुरु तक की खबर लेने लगे। इनके जीवन-चरित्र से यह भी पता चलता है कि राजा श्रेणिक ने एक दिन जैन-साधु के उज्ज्वलाचार पर हमला
For Private And Personal Use Only