Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 130
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૫૦ શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ કાર્તિક कर देते या अपने इस दैहिक सुख के लिए अपने आत्म--परमाणुओं को बदल देते । संगम इस चेष्टा से भी फलीभूत न हुआ। अंत में उसने अपने विद्याबल से सिद्धार्थ राजा और त्रिशला रानी को महावीर के सन्मुख उपस्थित किये। उनसे कहलाया कि " हे बेटा ! तू यहां कहां आगया ? हम तो तेरी खोज में दर दर भटक रहे हैं," किन्तु ऐसी बातों से क्या महावीर विचलित होनेवाले थे? वे तो समझ गये कि ये सब मुझे पथभ्रष्ट करने का तरीका है । इससे भी जब वे खलित नहीं हुए तो संगम चुपचाप निराश होकर उनके पैरों में गिर पड़ा और "भगवन् ! मैंने अज्ञानवश जो कुछ किया है उसे क्षमा करो," इस तरह स्तुति करके स्वर्ग को चला गया। भगवान् महावीर की आत्मा दिन प्रतिदिन इस तरह के कष्ट सहन करती हुई उच्चावस्था को पहुंचती जा रही थी। अभी उनके कुछ निकाचित कर्म बाकी थे, जिनके फल का भोग करना उनके लिये अत्यंत जरूरी था । उनको अभी एक विशेष भयंकर उपसर्ग की कसौटी पर पार उतरना था । कानों में कीलों का ठोका जाना : एक समय महावीर विहार करते हुए किसी नगर के समीप कायोत्सर्ग करके ध्यानस्थ अवस्था में खडे हो गये । उस समय कोई गुवाला अपने बैलां सहित उधर से आ निकला । उस समय उसे अपने किसी जरूरी काम की याद आ गई, इससे वह अपने दोनों बैलों को उनके समीप छोडकर चला गया। बैल चरते चरते बहुत दूर निकल गये । उसने वापिस आकर भगवान से पृट्टा, किन्तु भगवान् मौन ही रहे, इससे उसने दूसरी बार पूछा फिर भी भगवान् कुछ नहीं बोले, इससे उसको बहुत क्रोध उत्पन्न हो गया । गुवाले को उस समय भगवान की ध्यानस्थ अवस्था का बिलकुल ख्याल नहीं था। उसने फौरन पूर्व भव के वैर के कारण भगवान के दोनों कानों में शरकरा वृक्ष की दो कीलें ठोक दी, और इतना तक किया कि उनके बढे हुए मुंह काटकर उनको बराबर कर दिया, जिससे कि किसी को मालूम न हो । प्रभु इस भयंकर अवसर में भी उसी तरह निश्चल रहे । भगवान् महावीर का यह अंतिम उपसर्ग था, जिसको कि उन्होंने बड़ी वीरता, धीरता और गंभीरता से सहन किया । वहांसे विहार करके भगवान् किसी ग्राम के नजदीक पहुंचे। वहां 'खर' नामक एक वैद्य रहता था, उसने जब भगवान को देखा तो विचार किया कि इनका मुख निस्तेज क्यों हो रहा है. इन को किसी तरह की शारीरिक वेदना होनी चाहिये। अनुसन्धान करने से उसको उन दोनों कीलों का पता लगा । उसने सिद्धार्थ सेठ की सहायता से उनको निकाला, उस For Private And Personal Use Only

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