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विश्व
भगवान् महावीर के उपसर्ग
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लेखक: श्रीयुत राजमलजी लोढ़ा, जैन.
के इतिहास में जितनी भी आत्माओं ने अपना ध्येय आत्मा से परमात्मा बनने
का कर लिया था उन सबको अपने जीवन में कितने ही विकट प्रसंगों एवं उपसर्गों का सामना करना पडा है । उपसर्ग यह मनुष्य जीवन की कसौटी है, इतना ही नहीं उपसर्ग मानव आत्मा को परमात्मा बनाने का एक साधन है ।
आज भी हम यदि महावीर की जीवनी के उपर दृष्टि करें तो मालूम होगा कि उस परम पुनित आत्माने अपने जीवन के अन्दर अनेक घोर उपसर्गों का सामना किया था । उन उपसर्गों ने महावीर को अपने पथ से डिगाने का पूर्ण प्रयत्न किया, किन्तु महावीर के लिए वह कसौटी का समय था, महावीर उनके रहस्य को अच्छी तरह पहिचानते थे। उनमें यहां तक शक्ति थी कि यदि वे चाहते तो उनको क्षण मात्र में ही नष्ट कर देते, साथ ही इन्द्र महाराज भी उनकी सहायता करने के लिए तैयार थे किन्तु नहीं, भगवान् महावीर देव ने उपसर्गों को सहन करने में ही अपना कल्याण समझा और संसार के सामने यह आदर्श रक्खा कि प्राणा मात्र अपनी शक्ति से ही अपना आत्म-कल्याण कर सकता है, दूसरों की मदद से कभी कुछ नहीं कर सकता। भगवान् ने इंद्र को गंभीरता पूर्वक उत्तर दिया था कि "हे इन्द्र ! मोक्षाभिलाषी जीव कभी अपने आत्मकल्याण में दूसरों की सहायता नहीं चाहते। वे अपनी ताकत से बाधाओं का वीरता पूर्वक सामना कर, उनको शांति पूर्वक सहन करते हैं ।
आत्मा का
महावीर के तपस्या - काल में जितने भी उपसर्ग आये हैं उनको पढ़ते पढ़ते हमारी आत्मा थर्रा उठती है और पत्थर से भी कठोर हृदयवालों की आंखों में आंसू आ जाते हैं । उदाहरणस्वरूप हम कुछ उपसर्गों का निरीक्षण करें :----
गुवाले का उपसर्ग :
एक समय भगवान् महावीर 'कुमार' नामक ग्राम के समीपवर्ती जंगल में कायोत्सर्ग करके खड़े थे । इतने में एक गुवाल अपने दो बैलों के साथ उधर से आ
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