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વીર નિર્વાણુ સ'વત
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६० पालक के, १५० नन्दों के, १६० मौयों के, ३५ पुष्यमित्र के, ६० बलमित्र भानुमत्र के, ४० नभसेन के और १०० वर्ष गर्दभिल्लों के बीतने पर शकराजा उत्पन्न हुआ' ।
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(२) श्वेतांबर मेरुतुंगर ने अपने 'विचार श्रेणि' नामक पुस्तक में वीर निर्वाण सवत् और विक्रम संवत् के बीच का अंतर ४७० दिया है । इस हिसाब से वि० सं० में ४७०, शक संवत् में ६०५ और ई. सन् में ५२७ मिलाने से वीर निर्वाण संवत् आता है ।
(३) श्वेतांबर अंबदेव उपाध्याय के शिष्य नेमिचंद्राचार्य - रचित ' महावीर चरियं ' नामक प्राकृत काव्य में लिखा है, कि मेरे ( महावीर के ) निर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ महीने बीतने पर शक राजा उत्पन्न होगा । इससे भी वीर (१) “ जं रयणिं सिद्धिगओ अरहा तित्थंकरो महावीरो ।
तं स्यणिमवंतीए, अभिसित्तो पालओ राया ॥ ६२० ॥ पालगरण्णो सट्टो, पुण पण्णसयं वियाणि णंदाणम् । मुरियाणं सद्विसय, पणतीसा पूसमित्ताणम् ( तस्स ) ॥ ६२१ ॥ बलमित्त - भाणुमित्ता, सट्टा चत्ताय होंति नहसेणे । गद्दभसयमेगं पुण, पडिवनो तो सगो राया ॥ ६२२ ॥
पंच य मासा पंच य, वासा छच्चेव होंति वास सया । परिनिव्वु अस्सऽरिहतो, तो उप्पन्नो ( पडिवन्नो) सगो राया ॥ ६२३ ॥
यह पुस्तक विक्रम संवत् की छठी शताब्दी के आसपास की बनाई हुई मानी जाती है ।
(२)
विक्कमरज्जारंभा परउ सिरिवोरनिव्वुई भणिया । सुन्नमुणिवेत्तो विक्रमकालउ जिणकालो ||
विक्रमकालाजिनस्य वीरस्य कालो जिनकालः शून्यमुनिवेदयुक्तः चत्वारिशतानि सप्तत्यधिक-र्षाणि श्रीमहावीर विक्रमादित्ययोरंतरमित्यर्थः - ( विचार श्रेणि)
यह पुस्तक ई. स. १३१० के आसपास बना था ।
(3)
छहं वासाणसएहिं पंचहिं वासेहिं पंचमासेहिं ।
मम निव्वाणगयस्स उ उप्पज्जिस्सइ सगो राया ॥ -- ( महावीरचरियं )
यह पुस्तक वि. सं. १९४९ ( ई. स. १०८४ ) में बना था ।
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