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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 9463 વીર નિર્વાણુ સ'વત २२७ ६० पालक के, १५० नन्दों के, १६० मौयों के, ३५ पुष्यमित्र के, ६० बलमित्र भानुमत्र के, ४० नभसेन के और १०० वर्ष गर्दभिल्लों के बीतने पर शकराजा उत्पन्न हुआ' । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) श्वेतांबर मेरुतुंगर ने अपने 'विचार श्रेणि' नामक पुस्तक में वीर निर्वाण सवत् और विक्रम संवत् के बीच का अंतर ४७० दिया है । इस हिसाब से वि० सं० में ४७०, शक संवत् में ६०५ और ई. सन् में ५२७ मिलाने से वीर निर्वाण संवत् आता है । (३) श्वेतांबर अंबदेव उपाध्याय के शिष्य नेमिचंद्राचार्य - रचित ' महावीर चरियं ' नामक प्राकृत काव्य में लिखा है, कि मेरे ( महावीर के ) निर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ महीने बीतने पर शक राजा उत्पन्न होगा । इससे भी वीर (१) “ जं रयणिं सिद्धिगओ अरहा तित्थंकरो महावीरो । तं स्यणिमवंतीए, अभिसित्तो पालओ राया ॥ ६२० ॥ पालगरण्णो सट्टो, पुण पण्णसयं वियाणि णंदाणम् । मुरियाणं सद्विसय, पणतीसा पूसमित्ताणम् ( तस्स ) ॥ ६२१ ॥ बलमित्त - भाणुमित्ता, सट्टा चत्ताय होंति नहसेणे । गद्दभसयमेगं पुण, पडिवनो तो सगो राया ॥ ६२२ ॥ पंच य मासा पंच य, वासा छच्चेव होंति वास सया । परिनिव्वु अस्सऽरिहतो, तो उप्पन्नो ( पडिवन्नो) सगो राया ॥ ६२३ ॥ यह पुस्तक विक्रम संवत् की छठी शताब्दी के आसपास की बनाई हुई मानी जाती है । (२) विक्कमरज्जारंभा परउ सिरिवोरनिव्वुई भणिया । सुन्नमुणिवेत्तो विक्रमकालउ जिणकालो || विक्रमकालाजिनस्य वीरस्य कालो जिनकालः शून्यमुनिवेदयुक्तः चत्वारिशतानि सप्तत्यधिक-र्षाणि श्रीमहावीर विक्रमादित्ययोरंतरमित्यर्थः - ( विचार श्रेणि) यह पुस्तक ई. स. १३१० के आसपास बना था । (3) छहं वासाणसएहिं पंचहिं वासेहिं पंचमासेहिं । मम निव्वाणगयस्स उ उप्पज्जिस्सइ सगो राया ॥ -- ( महावीरचरियं ) यह पुस्तक वि. सं. १९४९ ( ई. स. १०८४ ) में बना था । For Private And Personal Use Only
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
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