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वीर निर्वाण संवत्
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लेखक : महामहोपाध्याय, रायबहादुर, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, अजमेर
जैनों के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ( वीर, वर्द्धमान) के निर्वाण (मोक्ष) से जो संवत् माना जाता है, उसको वीर निर्वाण संवत् कहते हैं ।
जैसे प्राचीन बौद्ध विद्वानों एवं आधुनिक पुरातत्ववेत्ताओं में बुद्धनिर्वाण संवत् में परस्पर मतभेद है, वैसे ही उनमें वीर निर्वाण संवत् के विषय में भी है।
डॉक्टर हर्मन जैकोबी ने, जो जैन साहित्य के प्रसिद्ध ज्ञाता माने जाते हैं, स. पूर्व ४६७ (वि. सं. से पूर्व ४१० ) में महावीर का निर्माण होना माना है । यही मत कार्पेण्टियर का है। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता श्रीयुत काशीप्रसाद जायसवाल ने अपने कई लेखों में ई. सं. पूर्व ५४५ (वि. संवत् से पूर्व ४८८ ) में वीर निर्वाण होना स्थिर किया है । वीर निर्वाण संवत् बहुधा जैन ग्रंथों में लिखा मिलता हैं और कभी कभी शिलालेखों में भी मिल आता है । उसका अंतर कभी विक्रम संवत् से और कभी शक संवत् से लिखा मिलता है । जैन आचार्यों के कथन को आधुनिक शोधकों के मत की अपेक्षा हम अधिक प्रामाणिक समझते हैं। इसी तरह पिछले कुछ जैन लेखकों ने इस विषय में जो कुछ भिन्न लिखा है वह भी भ्रमपूर्ण ही है । श्वेतांबर और दिगंबर जैन ग्रंथकारों के मत हम नीचे उद्घृत करते हैं
(१) “तित्यो गाली पइन्नय" नामक प्राचीन जैन ग्रंथ में महावीर निर्वाण से शक संवत् के प्रारंभ तक ६०५ वर्ष और ५ महीने माने हैं और उसका ब्यौरा इस तरह दिया है :
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