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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२८ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ डार्लिंड निर्वाण संवत् और शक संवत् के बीच ठीक वही अंतर आता है, जो ऊपर लिखा गया है । (४) दिगंबर सम्प्रदाय के नेमिचंद्र - रचित 'त्रिलोकसार' नामक पुस्तक में भी वीरनिर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ महीने बाद शक राजा का होना लिखा है । इससे पाया जाता है कि दिगंबर संप्रदाय के जैनों में भी पहले वीरनिर्वाण और शक संवत् के बीच ६०५ वर्ष का अंतर होना स्वीकार किया जाता था, जैसा कि श्वेताम्बर संप्रदायवाले मानते हैं, परंतु त्रिलोकसार के टीकाकार माधवचन्द्र ने त्रिलोकसार में लिखे हुए 'शक' राजा को भूल से 'विक्रम' मान लिया, जिससे कितने एक पिछले दिगंबर जैन लेखकों ने विक्रम संवत् से ६०५ ( शक संवत् से ७४०) वर्ष पूर्व वीर निर्वाण होना मान लिया जो ठीक नहीं है । दिगंबर जैन लेखकों ने कहीं शक संवत् से ४६१, कहीं ९७९५ और कहीं १४७९३ वर्ष पूर्व वीर निर्वाण होना भी लिखा है, परंतु ये मत स्वीकार योग्य नहीं है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वास्तव में विक्रम संवत् से ४७० वर्ष पूर्व, शक संवत् से ६०५ वर्ष पूर्व और ईस्वीसन से ५२७ वर्ष पूर्व भगवान् महावीर के निर्वाण संवत् का प्रारंभ मानना युक्तिसंगत है, जैसा कि प्राचीन जैन आचार्यों ने माना है। ( ४ ) पण छस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिअ वीर निव्वुइदो सगराजो० - ( त्रिलोकसार, श्लोक ८४८ ) यह पुस्तक वि. सं. को ११ वीं शताब्दी में बना था । हरिवंशपुराण में भी वीरनिर्वाण से ६०५ वर्ष बीतने पर शक राजा का होना लिखा है और मेघनंदि के श्रावकाचार में भी ऐसा ही लिखा है। ચેતવણી संबुझह ! किं बुज्झह ? संबोही खलु पेच दुलहा । णो हूवणमंत राइओ, नो सुलहं पुणरावि जीवियं ॥ જાગા ! તમે કેમ સમજતા નથી ? પાછળથી આધીબીજની પ્રાપ્તિ થવી મુશ્કેલ છે. (કારણકે જેમ) વીતી ગએલી रातो पाछी नथी भवती (तेभ) मा भुवन (मनुष्यलव) ક્રીથી સહેલાઇથી મળી શકતું નથી. -શ્રી સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર For Private And Personal Use Only
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
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