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મહાવીરચરિત્ર-મીમાંસા ३४ चौंतीसवां वर्ष (वि० पू० ४७९-४७८) (२२) गुणशील चैत्य में कालोदायी का प्रतिबोध । नालन्दा में गौतम और पेढालपुत्र का संवांद। जालि, मयालि आदि मुनियों के विपुलाचल पर अनशन । वर्षावास नालन्दा में।
३५ पेंतीसवां वर्ष (४७८-४७७) (२३) विदेह की तरफ प्रयाण । वाणिज्यग्राम के समवसरण में सुदर्शन श्रेष्टिप्रतिबोध । वर्षावास वैशाली में।
३६ छत्तीसवां वर्ष (वि० पू० ४७७-४७६) (२४) कोशल, पाञ्चाल, सूरसेनादि देशों में विहार । साकेत में कोटिवर्ष नगर के किरातराज की दीक्षा । कांपिढ्य, सौर्यपुर, मथुरा, नन्दीपुर आदि नगरों में समवसरण । पुनः विदेह में विहार । वाणिज्यग्राम के पास कोल्लागसन्निवेश में आनन्दश्रमणोपासक के साथ इन्दभूति गौतम का अवधिज्ञानविषयक वार्तालाप । वर्षावास मिथिला में ।
३७ सेंतीसवां वर्ष (वि० पू० ४७६-४७५) (२५) अंगदेश की तरफ बिहार । चम्पा के समवसरण में श्रमणापासक कामदेव के धैर्य की प्रशंसा। राजगृह को विहार । अनगार रोह के लोक-अलोक संबन्धी प्रश्न । अनेक दीक्षायें । गणधर प्रभास तथा अनेक मुनियों का निर्वाण । वर्षावास राजगृह में ।
३८ अडतीसवां वर्ष (वि० पू० ४७५-४७४) (२६) मगधभूमि में ही विहार । राजगृह के समवसरण में अन्य तीथिकां की क्रियाकाल-निष्ठाकालादि विषयक मान्यताओं के संबन्ध में गौतम के अनेक प्रश्नोत्तर । गणधर अचलभ्राता और मेतार्य का निर्वाण । वर्षावास नालन्दा में ।
३९ उनचालीसवां वर्ष (वि० पू० ४७४-४७३) (२७) विदेहभूमि की तरफ विहार । मिथिला के माणिभद चैत्य में ज्योतिषशास्त्र की प्ररूपणा । वर्षावास मिथिला में ।
४० चालीसवां वर्ष (वि० पू० ४७३-४७२) (२८) विदेहभूमि में ही विहार, अनेक दीक्षायें । वर्षावास मिथिला में ।
४१ इकतालीसवां वर्ष (वि० पू० ४७२-४७१ ) (२९) मगध की तरफ विहार । राजगृह में समवसरण । महाशतक श्रमणोपासक को हित--संदेश । गर्भजलदह, आयुष्यकर्म, मनुष्यलोक की मानववसति, दुःखमान,
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