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जय बोलोसम्यक दर्शन की जय बोलो सम्यक दर्शन की । रत्नत्रय के पावनधन की । यह मोह ममत्व भगाता है शिव पथ में सहज लगाता है।
जय निज स्वभाव आनद धन की ।।जय बोलो ।।१।। परिणाम सरल हो जाते हैं, सारे सकट टल जाते हैं।
जय सम्यक ज्ञान परम धन की ।। जय बोलो ।।२।। जप तप सयम फल देते हैं, भव की बाधा हर लेते हैं।
जय सम्यक चारित पावन की ।। जय बोलो ।।३।। निज परिणति रूचि जुड़ जाती है, कमों की रज उड़ जाती है।
जय जय जय मोक्ष निकेतन की ।। जय बोलो ।।४।।
तो से लाग्यो नेहरे तोसे लाग्यो नेह रे त्रिशलानदन वीर कुमार । नोसे लाग्यो नेह रे, कुन्डलपुर के राजकुमार ।।तोसे ।।१।। गर्भकाल रलो की वर्षा, सोलह स्वप्न विचार ।। त्रिशला माता हुई प्रफुल्लित, घर-घर पगलाचार तोसे ।।२।। जन्म समय सुरपति सुमेरु पर, करें पुण्य अभिषेक । तप कल्याणक लौकान्तिक आ करे हर्ष अतिरेक तोमे ||३|| चार घातिया क्षय करते ही पायो केवल ज्ञान । ममवशरण मे खिरी दिव्यध्वनि, हुआ विश्व कल्याण तोसे ।।४।। पावापुर से कर्मनाश सब पाया पद निर्वाण । यही विनय है दे दो स्वामी हमको सम्यक ज्ञान तोसे ।।५।। भेदज्ञान की ज्योति जगा दो अधकार कर क्षार ।। तुम सपान में भी बन जाऊँ हो जाऊँ भव पार ।।तोसे ।।६।।
सुनी जब मैंने जिनवाणी भ्रम तम पटल चीर, दरसायो चेतन रवि ज्ञानी ॥सुनी काम क्रोध गज शिथिल भए, पीवत समरस पानी । प्रगट्यो भेद विज्ञान निजतर, निज आतम जानी ॥सुनी ॥१॥