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फिर तेरह विधि चारित्र धार, निज रूप निरखता बार-बार,
श्रेणी चढ कर हो जाता केवलज्ञानी फल पायो. ।।५।। निज के स्वरूप की मस्ती में, रहता स्वभाव की बस्ती में,
निश्चित पाता है सिद्धों की रजधानी फल पायो ।।६।। जिसने भी मन से पाठ किया, उसने ही मगल ठाठ किया । क्रम-क्रम से पाता मोक्ष लक्ष्मी रानी फल पायो.।।७।।
नरभव को सफल बनाओ तुम करो आत्म कल्याण, धरो निज ध्यान,
मोक्ष मे जाओ । नर भव को सफल बनाओ ।। मिथ्यात्व अधेरा छाया है, रागों ने सदा रूलाया है । अज्ञान तिमिर को हरो, ज्ञान प्रगटाओ ।।
नर भव को सफल बनाओ। पर्याय मूढता में पड़कर, रहते विभाव में ही अड़ कर । अब द्रव्य दृष्टि बन,निज का दर्शन पाओ ।। नर भव को सफल बनाओ
।।२।। सातो तत्वों का ज्ञान करो, अपने स्वभाव का मान करो । अब सम्यक दर्शन, निज अतर मे लाओ ।। नर भव को सफल बनाओ
॥३ ॥ लो भेद ज्ञान का अवलम्बन, है मुक्ति वधू का आमत्रण । शिव पुर में जाकर, अविनश्वर सुख पायो । ।
नर भव को सफल बनाओ
मैं तो सर्वज्ञ स्वरुपी हूँ मैं अपने भावों का कर्ता, अपने वैभव का स्वामी हूँ । शुभ अशुभ विभाव नही मुझमे, निर्मल अनत गुणधामी हूँ ।। में ज्योति पुज चित्चमत्कार, चैतन्य पूर्ण सुखरुपी हूँ ।।
मैं तो सर्वज्ञ स्वरूपी हूँ मैं ज्ञानानदी ज्ञान मात्र अविचल दर्शन बलधारी हैं। मैं शाश्वत चेतन मगलमय अविनाशी हूँ अविकारी हूँ। मैं परम सत्य शिव सुन्दर हूँ, मै एक अखड अरूपी हूँ ।।
मैं तो सर्वज्ञ स्वरूपी हूं
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