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गुण आदर । एदेशी। श्री अभिनंदन दुःष निकॅदन बँदन पूजन योज्ञजी श्री ॥ संबर राय सिधास्था राणी जेहनौ आतम जातजी प्रान पियारो साहिब सांचौ तुही जो मात नै तातजी ॥श्री।। २ ॥ केई यक सेब कर शंक की' केइ यक भजै मुरारिजी। गन पति सूर्य उमाकेई सुमेरे हूं सुमरूँ अविकारजी। श्री।देव कृपा सू पाम लछमी सौ इन भव को सुख जी। तो तूठा इन भव पर भव में कदे इन व्यापै दुःखजी ।।श्री॥४॥ जदपी इन्द्र नरिन्द्र निबाजै तदपी करत निहारजी। पुजनीक नरिन्द्रं इन्द्र को दीनदयालकृपालजी॥श्री।।५।। जब लग आवागमन न छूटे. तब लग करां 'अरंदासजी ॥ संपति सहित ग्यान समकित गुण पाऊँ दृढ बिसवासजी ॥श्री॥६॥ अधम