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प्रेम मगन हुई जासों राजं || आगाशी मन बच काय लाय प्रभु सेती निस दिन सास उ सास संभव जिनकी मोहनी मूरति हिये नि रंतर ध्यास्यां राज | ३ || आ०॥ दान दयाल दीन बँधव के खाना जाद कहासांतनधन प्रान समरपी प्रभु को इन पर बेग रिझासां राज|| आ ||४|| अष्ट कर्म दल अति जोरावर ते जात्यां सुख पात्रां ॥ जालम मोहमार कौ जानें साहस करी भगासां राजं || आ०||५|| जब पँथ तजी दुरगति को सुभगति पंथ सँभासां ॥ आगम अरथ तणे अनुसार अनु भवदसा अभ्यासांराज़ | आ०॥६॥काम क्रोध
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मद लोभ कपट तजि निजगुणसुं लवलासां ।। पिनचंद संभव जिन तूठौ आवा गवन मिटा सांराज आ७इति ३ ढाला आदरजीवषीम्या
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