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९ सं० यक्षी
वाहन भुजा-सं० २२. अम्बिका या कुष्माण्डी सिंह चार
या आम्रादेवी-(क) श्वे०
(ख) दि०
सिंह
दो
जैन देवकुल के विकास में हिन्दू तंत्र का अवदान आयुध
अन्यलक्षण मातुलिंग या आम्रलुम्बि, एक पुत्र पाश, पुत्र, अंकुश समीप ही
निरूपित होगा आम्रलुम्बि, पुत्र। दूसरा पुत्र फल, वरदमुद्रा आम्रवृक्ष की (अपराजितपृच्छा) छाया में
अवस्थित यक्षी के
समीप होगा पद्म, पाश, फल, अंकुश शीर्षभाग में
त्रिसर्पफणछत्र
२३. पद्मावती-(क) श्वे०
(ख) दि०
कुक्कुट- चार सर्प या कुक्कुट पद्म या चार, कुक्कुट- छह, सर्प या चौबीस कुक्कुट
1 अंकुश, अक्षसूत्र या शीर्षभाग में तीन ___पाश, पद्म, वरदमुद्रा सर्पफणों का (ii) पाश, खड़ग, शूल, छत्र
अर्धचन्द्र, गदा, मुसल (iii) शंख, खड्ग, चक्र,
अर्धचन्द्र, पद्म, उत्पल, धनुष, शक्ति, पाश, अंकुश, घण्टा, बाण, मुसल, खेटक, त्रिशूल, परशु, कुन्त, भिण्ड. माला, फल, गदा, पत्र, पल्लव, वरदमुद्रा पुस्तक, अभयमुद्रा, मातुलिंग या पाश, बाण या वीणा या पद्म । पुस्तक, अभयमुद्रा, वरदमुद्रा, खरायुध, वीणा, फल (मन्त्राधिराजकल्प)
२४. (i) सिद्धायिका-श्वे०
सिंह या गज
चार या छह
(ii) सिद्धायिनी-दि०
दो
भद्रासन या सिंह
वरदमुद्रा या अभयमुद्रा, पुस्तक
यदि हम इन यक्ष-यक्षी युगलों के नामों एवं प्रतिमा लक्षणों पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट लगता है इस सन्दर्भ में जैन परम्परा हिन्दू परम्परा से बहुत कुछ प्रभावित है। फिर भी कहीं कहीं उसने अपनी दृष्टि से या बौद्ध आदि अन्य परम्पराओं के प्रभाव से उसमें परिवर्तन भी किये हैं। डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी ने हिन्दू परम्परा से प्रभावित यक्ष-यक्षी युगलों को तीन भागों में विभाजित किया है वे लिखते हैं कि हिन्दू देवकुल से प्रभावित यक्ष-यक्षी युगल तीन भागों में विभाज्य हैं। पहली कोटि में ऐसे यक्ष-यक्षी युगल आते हैं जिनके मूल-देवता
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