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१२० जैनधर्म और तान्त्रिक साधना यह सूरिमंत्र गणभृद् विद्या और गणधर वलय के नाम से भी जाना जाता है। प्रस्तुत कृति का उद्देश्य तो मात्र एक ऐतिहासिक विकासक्रम में जैन तंत्र का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करना है। अतः हम सूरिमन्त्र के विभिन्न आम्नायों, प्रस्थानों या पीठों, जिनमें मन्त्र के वर्णों या पदों की संख्या को लेकर भिन्नताएँ हैं, की चर्चा में न जाकर मात्र सूरिमंत्र के ऐतिहासिक विकासक्रम की चर्चा करेंगे। श्वेताम्बर परम्परा में लब्धि (ऋद्धि) पद
सूरिमंत्र मूलतः लब्धिधरों के प्रति प्रतिपत्तिरूप है और जहाँ तक मेरी जानकारी है श्वेताम्बर परम्परा में प्रश्नव्याकरण सूत्र के वर्तमान उपलब्ध संस्करण, जो लगभग छठी-सातवीं शताब्दी की रचना है, में सूरिमंत्र में वर्णित अनेक लब्धिधारियों का उल्लेख है। मेरी दृष्टि में यह उल्लेख इस ग्रन्थ की रचना की अपेक्षा भी प्राचीन है। क्योंकि इसके पूर्व उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र के स्वोपज्ञ भाष्य (चतुर्थ शती) में भी हमें लब्धिधरों का उल्लेख मिलता है। हो सकता है कि वर्तमान संस्करण की योजना करते समय इसे या तो इसके ही पूर्व संस्करण से या पूर्व साहित्य के किसी ग्रन्थ से लिया गया हो।
हम यहाँ सर्वप्रथम प्रश्नव्याकरण का मूल पाठ देगें और उसके पश्चात् तत्त्वार्थभाष्य का मूलपाठ देंगे, ताकि तुलनात्मक अध्ययन में सुविधा हो। ज्ञातव्य है कि प्रश्नव्याकरण सूत्र का निम्न पाठ भगवती अहिंसा की देवी रूप में कल्पना करके कौन कौन किस-किस प्रकार से उसकी साधना करता है, इसका निर्देश करता हैप्रश्नव्याकरण सूत्र में लब्धिपद एसा भगवती अहिंसा, जा सा
अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण-विणय-तव-संजमनायकेहि तित्थंकरहिं सव्वजगजीववच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं जिणचंदेहिं सुठुदिट्ठा,
ओहिजिणेहिं विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता, पुव्वधरेहिं अधीता, वेउब्दीहिं पतिण्णा।
___आभिणिबोहियनाणीहिं सुयनाणीहिंमणपज्जवनाणीहिं केवलनाणीहिं आमोसहिपत्तेहिं खेलोसहिपत्तेहिं जल्लोसहिपत्तेहिं विप्पोसहिपत्तेहिं सव्वोसहिपत्तेहिं बीजबुद्धीहि कोट्ठबुद्धीहिं पदाणुसारीहिं संभिण्णसोतेहिं सुयधरेहिं मणबलिएहिं वयिबलिएहिं कायबलिएहिं नाणबलिएहिं दंसणबलिएहिं चरित्तबलिएहिं खीरासवेहिं महुआसवेहिं सप्पिआसवेहि अक्खीणमहाणसिएहिं
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