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जैनधर्म और तांत्रिक साधना इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न जैनाचार्यों ने पूजाविधान के अंगों के सम्बन्ध में अपने भिन्न-भिन्न मंत्र प्रदर्शित किये हैं। इनमें संख्या, क्रम एवं मन्त्र आदि के सम्बन्ध में भिन्नता होते हुए भी कोई मौलिक अन्तर परिलक्षित नहीं होता। सभी ने तन्त्र साधना के पूर्व शरीरशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, भूमिशुद्धि, मंत्रस्नान, कल्मषदहन, हृदयशुद्धि न्यास, सकलीकरण आदि का उल्लेख किया है। अन्य तान्त्रिक परम्पराओं के समान ही जैनाचार्यों ने भी भूमिशुद्धि, शरीरशुद्धि, वस्त्रशुद्धि के वाह्य विधि-विधानों के साथ विभिन्न मंत्रों की भी योजना की है। शरीरशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, भूमिशुद्धि एवं मन्त्र स्नान
भैरव पदमावतीकल्प में मन्त्र साधना प्रारम्भ करने के पूर्व के बाह्यशुद्धि, आन्तरिक एकाग्रता और न्यास करने का उल्लेख है। उसमें कहा गया है
स्नात्वा पूर्व मन्त्री प्रक्षालित रक्त परिधानः ।
समार्जित प्रदेशे स्थित्वा सकलीक्रिया कुर्यात् ।।
अर्थात् मन्त्रसाधक स्नान करके प्रक्षालित वस्त्रों को धारणकर शुद्ध भूमि पर स्थिति होकर सकलीकरण क्रिया करे। यहां यह ज्ञातव्य है कि जहां भैरव-पद्मावतीकल्प में रक्तवर्ण के वस्त्र पहन
ने का विधान है, वहां मन्त्रराजरहस्य इस सम्बन्ध में मौन है। किन्तु अन्य ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न प्रयोजनों में भिन्न-भिन्न रंग के वस्त्रों से जप करने के विधान हैं। यह विधि गृहस्थ साधकों के लिए है। जैन साधु तो आजीवन अस्नान का व्रत लेता है, वह या तो नग्न रहता है या श्वेत वस्त्र धारण करता है। अतः वह तो मन्त्रों से ही पञ्चांग शौच, शरीर शुद्धि, वस्त्रशुद्धि एवं स्नान करता है। वह शुद्धि हेतु निर्दिष्ट मंत्रों का उच्चारण करते हुए दोनों करों, दोनों पैरों अथवा वस्त्रादि पर हाथ घुमाते हुए उन्हें पवित्र बनाने की संकल्पना करता है। सर्वप्रथम वह निर्दिष्ट मन्त्र से शरीर पर हाथ घुमाते हुए पञ्चांगशौच करे फिर वस्त्र शुद्धि करने हेतु भी 'ॐ हीं इवीं क्ष्वी आदि मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्रों पर हाथ घुमाते हुए वस्त्र शुद्धि करे। इसके पश्चात् भूमिशुद्धि करे। मन्त्रराजरहस्य (पृ० १०४) में सिंहतिलक सूरि लिखते हैं कि सर्वप्रथम स्नान करके धुले हुए वस्त्र धारण कर झोली को सम्मुख रखकर पूर्वोत्तर दिशा में मुख करके ईर्यापथ प्रतिक्रमण अर्थात् मार्ग में गमनागमन में हुई हिंसा की आलोचना करके निम्न मंत्र से भूमिशुद्धि करें
"ॐ भूरसिभूतधात्रि सर्वभूतहिते भूमिशुद्धिं करु कुरू स्वाहा'
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