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३६७ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना मंत्र, तंत्र और यंत्रों के प्रयोग दिये गये हैं। मंत्रों के साथ-साथ इसमें विद्याओं का भी उल्लेख हुआ है। विद्याओं के प्रसंग में इसमें वर्धमानविद्या, लोगस्सविद्या, शक्रस्तव विद्या का भी उल्लेख है। मंत्रों में पार्श्वमंत्र, मणिभद्रमंत्र, गौतममंत्र, पद्मावतीमंत्र, ज्वालामालिनीमंत्र, घण्टाकर्णमंत्र आदि के साथ-साथ सूर्यमंत्र, गणेशमंत्र, हनुमानमंत्र, भैरवमंत्र, गोरखमंत्र, मुस्लिममंत्र आदि का भी इसमें संकलन किया गया है। जो कि जैन परम्परा सम्मत नहीं है। यही स्थिति यंत्रों और तंत्रो में भी है। सम्मोहन, आकर्षण, वशीकरण आदि संबंधी मंत्र और तंत्रों के प्रयोग इसमें वर्णित है। जो जैन परम्परा की मूलभूत आध्यात्मिक दृष्टि के विपरीत ही कहे जा सकते है। फिर भी यह जैन मंत्र, तंत्र और यंत्रों का एक अच्छा संकलन ग्रन्थ है। मंत्र शक्ति
प्रवचनकार- आचार्य पुष्पदंतसागरजी महाराज, सम्पा०-मुनि श्री तरुणसागरजी महाराज, प्रकाशक-अजयकुमार कासलीवाल पंछी, इन्दौर एवं प्रमोदजैननौगामा, बांसवाड़ा।
इस पुस्तिका में आचार्य श्री पुष्पदंतसागरजी महाराज के प्रवचनों का संकलन है। जिसमें मुख्यरूप से ‘णमोकरमंत्र के महत्त्व का आख्यानों के माध्यम से वर्णन किया गया है आचार्य श्री के अनुसार पंचणमोक्कार मंत्र की शक्ति अनुपम है। संसार के सभी मंत्र इसके ही गर्भ से जन्में हैं। इस मंत्र में ५ पद, ५८ मातृकाएँ एवं ३५ व्यंजन हैं। जो अलौकिक शक्ति से युक्त हैं। इसमें मंत्र सिद्ध करने वाले की पात्रता का भी संक्षिप्त विवेचन किया गया है। जैन तंत्र की दृष्टि से कृति महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार जैन परम्परा में विपुलमात्रा में तांत्रिक साहित्य का सर्जन हुआ है। इस विधा के स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना क्रम का प्रारम्भ लगभग दसवीं शती से होकर सम्प्रतिकाल तक निरन्तर जारी है।
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