Book Title: Jain Dharma aur Tantrik Sadhna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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३७३. जैन धर्म और तांत्रिक साधना ॐ नट्ठट्ठ-मयट्ठाणे, पणट्ठकम्मट्ठ-नट्ठसंसारे। परमट्ठ-निट्ठियट्ठे, अट्ठगुणाधीसरं वंदे ।।१०।।
पवयणमंगलसारथयं ।। प्रवचनमङ्गलसारस्तवः
-श्री उद्योतन सूरि अरिहंते णमिऊणं सिद्धे आयरिय-सव्वसाहू अ। पवयणमंगल सारं वुच्छामि अहं समासेणं ।।१।। पढमं णमह जिणाणं ओहिजिणाणं च णमह सवेसिं। परमोहिजिणे पणमह अणंतओहीजिणे णमह ।।२।। सव्वोहिजिणे वंदे पणमह भावेण केवलिजिणे या णमह य भवत्थकेवलिजिणणाहे तिविहजोएणं ।।३।। पणमह उज्जुमईणं विउलमईणं च णमह भत्तीए। पण्हासमणे पणमह णमह तहा बीयबुद्धीणं ।।४।। पणमेह कुट्ठबुद्धी पयाणुसारीण णमह सव्वेसिं । पणमामि सुयहराणं णमह य संभिन्नयोयाणं ।।५।। पणमह चउदसपुवी तह दसपुव्वी अ वायगे वंदे। इक्कार संग सुत्तत्थधारए णमह आयरिए ।।६।। चारणसमणे पणमह तह जंघाचारणे अ पणमामि। वंदे विज्जासिद्धे आगासगए अ जिणकप्पे ।।७।। आमोसहिणो वंदे खेलोसहि-जल्लमोसहे णमह। सव्वोसहिणो वंदे पणमह आसीविसे चेव ।।८।। पणमह दिट्ठीविसिणो वयणविसे णमह तत्तलेसिल्ले । वंदामि सीअलेसे विप्पोसहिणो अ वंदामि ।।६।। खीरासवाण णमिमो महुआसवाण वंदिमो चलणे। अमयासवाण पणमह अक्खीणमहाणसे वंदे ।।१०।। पणमामि विउव्वीणं जलहीगमणाण भूमिमज्जीणं । वंदामि अणुअरूवे महल्लरूवे पणिवयामि ।।११।। मणवेगिणो अ पणमह गिरिरायअइच्छगे पणिवयामि । दिस्सादिस्से णमिमो णमह य सव्विड्ढिसंपन्ने । ।१२।।
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