Book Title: Jain Dharma aur Tantrik Sadhna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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४१७
जैनधर्म और तांत्रिक साधना
केवलज्ञान-संसिद्धा-वीशानाय नमोऽस्तु ते ।।१४।। पुरस्तत्पुरुषत्वेन, विमुक्तपदभाजिने । नमस्तत्पुरुषाऽवस्थां, भाविनी तेऽद्य विभ्रते।।१५।। ज्ञानावरण-निर्दा सा-न्नमस्तेऽनन्तचक्षुषे । दर्शनावरणोच्छेदा-न्नमस्ते विश्वदृश्वने । ।१६ ।। नमो दर्शनमोहघ्ने, क्षायिकाऽमलदृष्टये । नमश्चारित्रमोघ्ने, विरागाय महौजसे ।।१७ ।। नमस्तेऽनन्तवीर्याय, नमोऽनन्तसुखात्मने । नमस्तेऽनन्तलोकाय, लोकालोका-वलोकिने ।।१८ ।। नमस्तेऽनन्तदानाय, नमस्ते नऽन्तलब्धये। नमस्तेऽनन्तभोगाय, नमोऽनन्तोपभोग! ते।।१६।। नमः परम यो गय, नमस्तुभ्यमयो नये । नमः परमपूताय, नमस्ते परमर्षये ।।२०।। नमः परमविद्याय, नमः पर-मतच्छिदे । नमः परम-तत्त्वाय, नमस्ते परमात्मने ।।२१।। नमः परम-रूपाय, नमः परम-ते जसे । नमः परम-मार्गाय, नमस्ते परमेष्ठिने ।।२२।। परमं भेजुषे धाम, परमज्योतिषे नमः । नमः पारेतमः प्राप्त-धाम्ने परतराऽऽत्मने।।२३।। नमः क्षीणकलङ्काय, क्षीणबन्ध! नमोऽस्तु ते। नमस्ते क्षीणमोहाय, क्षीणदोषाय ते नमः । ।२४ ।। नमः सुगतये तुभ्यं, शोभनां गतिमीयुषे । नमस्तेऽतीन्द्रिय-ज्ञान-सुखाया निन्द्रियात्मने ।।२५।। काय-बन्धन-निर्मोक्षा-दकायाय नमोऽस्तु ते। नमस्तुभ्य-मयोगाय योगिनामधियोगिने ।।२६ ।। अवेदाय नमस्तुभ्य-मकषायाय ते नमः । नमः परम-योगीन्द्र-वन्दिताङ्घिद्वयाय ते।।२७ ।। नमः परम-विज्ञान!, नमः परम-संयम! | नमः परमदृग्दृष्ट-परमार्थाय तायिने ।।२८।।
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