Book Title: Jain Dharma aur Tantrik Sadhna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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४४० जैनाचार्यों द्वारा विरचित ता० स्तोत्र ॐ अम्बिकादेवि! ह्रीं फट् स्वाहा ।
जातिपुष्पैः सहस्राणि १० जापः । इति पूर्वसेवा। नित्यं च वार २१ जापः । वार ३ थू कमन्त्री वामकनिष्ठया पुण्ड्रं सभावश्यम् ।
__ ॐ आकाशगामिनि! नगरपुरपाटणक्षोभिणि! रायराणाअमात्यवशीकरणी ॐ हीं अम्बिके! हुं फट् स्वाहा। २१ स्मरणा।
ॐ हीं अम्बिके! उज्जयन्तनिवासिनि! सर्वकल्याणकारिणि! हीं नमः । स्मरणा।
ॐ हीं सिद्धमात अम्बिके! मम सर्वसिद्धिं देहि देहि हीं नमः । सदा स्मरणा कार्या।
ॐ क्ली हर हर ठः ठः सर्वदुष्टान् वशीकुरु कुरु त्रिपुरक्षोभिनि! त्रिपुरवशीकरणि! ॐ हीं अम्बिके! स्वाहा।
सदा स्मरणा। ॐ नमो भगवति! कूष्माण्डिनि! मी ही ही शासनदेवि! अवतर अवतर घटे दर्पणे जले वाममेतं कायं सत्यं ब्रूहि ब्रूहि स्वाहा । दीपे कन्याशुभाशुभं वक्ति ।
ॐ हीं रक्ते! महारक्ते! और शासनदेवि! एहि एहि अवतर अवतर स्वाहा।
ॐ हीं रक्ते! महारक्ते! हाँ ह्स्क्ल्ही ह्स्क्ल्ब्लूँ शासनदेवि! एहि एहि अवतर अवतर स्वाहा।
ॐ हीं अम्बे! अम्बकूष्माण्डे! रक्ते! रक्तस्त्रे! अवतर अवतर एहि एहि शीघ्रमानय आनय मम चिन्तितं कार्यं कथय कथय ॐ हीं स्वाहा । दीपावतारमन्त्रः ।
ॐ कारसम्पुटस्थानं हयरेहपरिय............... | बिंदुकलासंजुत्तं लिहह सनामं सयाकालं ।।१।। पुव्वाई अट्ठदलं सु...मणं लिहह भुज्जपत्तम्मि। दंसणनाणचरित्ता तव चतुरो छहि पुव्वाइं।।२।। चन्दणकप्पूरेणं लिहह क्रम पञ्चबाणमन्तेहिं। अद्धाहं सेयकुसुमेहिं अठुत्तरं जाव ।।३।। कंपाविअम्बिएणं गंधक्खयधूवकुसुमदीवहिं। अण्णं चिय इट्ठधुरं पण जं जरइ देवएण मन्तेणं ।।४।। पुण पुत्तह वरकण्णा दीवणमज्झम्मि मीइ जं रूवं। सदं वा आअम्बइ सुहासुहं तं फुडं होइ।।५।।
__-'भैरवपद्मावतीकल्प' पृ० ६२ से उद्धृत'
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