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जैन धर्म का तंत्र साहित्य मन्त्र साधक के लक्षण, सकलीकरण, मन्त्रसाधनविधि, मन्त्रजापविधि, मन्त्रशास्त्र में अकडम चक्र का प्रयोग, मन्त्रसाधनविधि, मुहूर्तकोष्टक, मन्त्र सिद्ध होगा अथवा नहीं यह जानने की विधि, मंडलों का नक्शा आदि वर्णित हैं। द्वितीय खंड में स्वर-व्यंजनों का स्वरूप एवं शक्ति, विभिन्न रोगों व कष्टों के निवारण हेतु ५०८ मंत्र विधि सहित दिये गये हैं। तृतीय खंड में यंत्र लिखने एवं बनाने की विधि, यंत्र की महिमा, छंद का भावार्थ, शकुन्दापन्दरिया यन्त्र, मनोकामनासिद्धि यन्त्र आदि विभिन्न यन्त्र चित्र सहित दिये गये हैं। चतुर्थ खंड में प्रत्येक तीर्थंकर काल में उत्पन्न शासन रक्षक, यक्ष-यक्षिणियों के चित्रसहित स्वरूप एवं होम विधान दिये गये हैं। पंचम खंड में विभिन्न तन्त्रों के माध्यम से इष्ट सिद्धि का वर्णन किया गया है, अतएव इसे तन्त्राधिकार भी कहा गया है। मंत्रचिंतामणि
पं० धीरजलाल शाह की यह कृति भी एक संग्रह कृति कही जा सकती है। इसमें भी जैन और हिन्दू दोनों ही परम्पराओं के अनुसार तांत्रिक साधना के विधि विधान दिए गये हैं। इसमें जैन धर्म में ॐ (ओंकार) उपासना, हींकार उपासना, हींकार उपासना में पंचपरमेष्ठि चौबीस तीर्थंकर, पार्श्वनाथ, धरणेन्द्र तथा पद्मावती की उपासना की भी चर्चा की गई है। इस प्रकार यह हिन्दू परम्परा के मंत्रों के साथ-साथ जैन परम्पराओं के नमस्कार मंत्र की भी चर्चा करता है। तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से यह जैन तंत्र का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ कहा जा सकता है। मंत्राधिराज
इसके लेखक बसन्तलाल, कान्तीलाल एवं ईश्वरलाल हैं। यह कृति ऊँकारसाहित्यनिधि, भीलडियाजी तीर्थ से प्रकाशित है। इसमें नमस्कार मंत्र के महत्त्व आदि की चर्चा है। साथ ही नमस्कार मंत्र की साधना से होने वाली भौतिक उपलब्धियों की भी लेखक ने चर्चा की है। मंत्र-विद्या
लेखक करणीदान सेठिया, प्रकाशक-करणीदान सेठिया, ६ आरमेनियम स्ट्रीट, कलकत्ता, विक्रम संवत् २०३३१
यह कृति तीन खण्डों में विभक्त है। मंत्रविद्या खण्ड, तंत्रविद्याखण्ड और यंत्रविद्या खण्ड । जैन परम्परा के अनुसार मंत्र, यंत्र और तंत्र का उल्लेख तो इसमें है ही, किन्तु इसके साथ-साथ इसमें लोकपरम्परा के अनुसार भी
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