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जैनधर्म और तांत्रिक साधना अर्थात् हृदय में हाँ, कण्ठ में हीँ, तालु में हूँ, भ्रमध्य में हाँ और ब्रह्मरन्ध में हँ: की स्थापना करे। बीजाक्षरों के द्वारा उपरोक्त अङ्गन्यास करने की पद्धति के अतिरिक्त जैन परम्परा में पंचपरमेष्ठि अथवा नवपद के द्वारा भी अङ्गन्यास करने की परम्परा पाई जाती है। अधिकांश जैन आचार्यों ने पंचपरमेष्ठि और नवपद के द्वारा ही न्यास की विधि का प्रतिपादन किया है। पंचपरमेष्ठि के द्वारा न्यास करने की अनेक आम्नाय प्रचलित हैं। विद्यानुशासन में पंचपरमेष्ठि के द्वारा न्यास करने की विधि इस प्रकार दी गई है
ॐ णमो अरिहंताणं हाँ मम हृदय रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीँ मम मुखं रक्ष रक्ष स्वाहा !
ॐ णमो आयरियाणं हूँ मम दक्षिणाङ्ग रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ णमो उवज्झायाणं ह्रीँ मम पृष्ठाङ्ग रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं है: मम वामाङ्ग रक्ष रक्ष स्वाहा
V
ॐ णमो अरिहंताणं ह्रीं मम लालटभागं रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीं मम ऊर्ध्वभाग रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ णमो आयरियाणं हूँ मम शिरोदक्षिणभागं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो उवज्झायाणं ह्रौ मम शिरोऽधोभागं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो अरिहंताणं हाँ मम दक्षिणकुक्षि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीं मम वामकुक्षि रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो आयरियाणं हूँ मम नाभिप्रदेश रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो उवज्झायाणं ह्रौ मम दक्षिणपार्श्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ह्रः मम वामपार्श्व रक्ष रक्ष स्वाहा ।
इसमें साधक पंचपरमेष्ठि पदों का उच्चारण करते हैं और जिस अङ्ग का नाम आता है उसका स्पर्श करते हैं। आचार्य कुन्थुसागर जी ने अपने ग्रंथ लघुविद्यानुवाद ( पृ०४ ) में भी न्यास की इसीविधि का निर्देश किया है, किन्तु पंचनमस्कृतिदीपक ग्रन्थ में सिंहनन्दि ने अङ्गन्यास का यह क्रम कुछ निम्न प्रकार से दिया है
'ॐ णमो अरिहंताणं' शिरोरक्षा । ॐ णमो सिद्धाणं मुखरक्षा ।
'ॐ णमो आयरियाणं' दक्षिणहस्तरक्षा । ॐ णमो उवज्झायाणं वामहस्तरक्षा | 'ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं' इति कवचम् ।।
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