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३४३ जैनधर्म और तांत्रिक साधना को मिलाकर नमस्कार की मुद्रा में आएं। 'ॐ ह्रीं णमों लोए सव्वसाहूण' का उच्चारण करें। श्वास भरते हुए हाथों को जोड़े। आकाश की ओर ले जाएं, श्वास छोड़ते हुए हाथों को अंजलि मुद्रा में लाकर अपनी श्रद्धा और भक्ति का इजहार करते हुए नीचे लाएं और नमस्कार मुद्रा बनाएं।
___मुनि आत्मधर्म के प्रति समर्पित होने से श्रद्धा और समर्पण के प्रतीक है। मुनि मुद्रा से विभाव से स्वभाव के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना जागृत होती है। अहंकार का विसर्जन होता है। शारीरिक दृष्टि से थाइमस ग्रंथि के स्राव संतुलित होते हैं। करुणा और मैत्री का विकास होता है जिससे ईर्ष्या, द्वेष जनित अनेक रोगों से बचते है।
संकल्प सूत्र संकल्प प्रयोग के समय मन, वाणी और शरीर को स्थिर करें। विशुद्ध भावों से चित्त को भावित करें। पद्यासन या सुखासन में संकल्प सूत्र को दोहरायें। दोनों हाथ जोड़कर आनंद केन्द्र पर स्थापित करें।
मैं चैतन्यमय हूँ मैं आनंदमय हूँ मैं शक्तिमय हूँ
मेरे भीरत अनंत चैतन्य का, अनंत आनंद का, अनंत शक्ति का सागर लहरा रहा है। उसका साक्षात्कार करना मेरे जीवन का लक्ष्य है।
ॐ शान्तिः ...................शान्तिः ......................शान्ति ................ ।
ॐ अर्हम् अर्हम् नमः
आसन
__मल्लिषेण ने भैरवपद्मावतीकल्प में मुद्राओं के साथ-साथ षट्कर्मों में आसनों का भी उल्लेख किया है। उनके अनुसार दण्डासन आकर्षण करने हेतु, स्वस्तिकासन वशीकरण हेतु, पंकजासन, शांति एवं पुष्टि प्रदान करने हेतु, कुक्कुटासन, विद्वेषण या उच्चारण हेतु वज्रासन, स्तम्भन हेतु भद्रपीठासन निषेध
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