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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना है। जैन तंत्र साहित्य का यह प्रथम बृहत्काय ग्रन्थ है। इसमें मंगलाचरण के पश्चात् पचास लब्धिपदों का निर्देश है। ये लब्धिपद वहीं हैं जो तत्त्वार्थभाष्य, प्रश्नव्याकरणसूत्र, षट्खण्डागम, अनुयोगद्वार आदि कृतियों में पाये जाते हैं । यद्यपि यहां इनकी संख्या ५० हो गयी है। इसके अतिरिक्त इसमें यह भी बताया गया है कि एक-एक लब्धिपद से २०-२० विद्याएं सिद्ध होती हैं । इस प्रकार ५०-५० लब्धिपदों से १००० विद्याएं सिद्ध होती हैं, ऐसा माना गया है। इसमें लब्धिपद, को सिद्ध करने की विधि का भी विस्तार से उल्लेख है। साथ ही यन्त्रलेखन, लब्धिदप, जापविधि आदि का निर्देश दिया गया है । ५० लब्धिपदों के बाद अन्य वाचना की अपेक्षा से ४० लब्धिपदों का उल्लेख किया गया है और उनके फलादि की चर्चा की गयी है। इसमें जप के भेद, जप के आसन, ध्याता की योग्यता, रेचक, कुम्भक आदि प्राणायाम की चर्चा है। इसके अतिरिक्त इसमें गुरु-शिष्य- लक्षण, मुद्रापञ्चक आदि का भी उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही सूरिमंत्र तथा सूरिमंत्र के विभिन्न प्रस्थान, ग्रहशान्ति आदि विषय भी इसमें वर्णित है। यह कृति भारतीय विद्या भवन बम्बई से सिंघी जैन सीरीज के अंतर्गत ग्रन्थांक ७३ के रूप में मुद्रित है । इस कृति के अंत में देवतावसर विधि परिशिष्ट के रूप में सूरिमंत्र, गणधरवलय, परमेष्ठिविद्या, ऋषिमंडल आदि से संबंधित स्तोत्र भी संगृहीत हैं।
विद्यानुवाद
भैरवपद्मावतीकल्प की भूमिका में पं० चन्द्रशेखर शास्त्री ने विद्यानुवाद का निर्देश किया है। इस कृति में विविध मंत्र एवं यंत्रों का संग्रह है । यह कृति दिगम्बर जैन मन्दिर, इन्दौर के सरस्वती पुस्तक भण्डार में उपलब्ध है। पं० चन्द्रशेखर शास्त्री के अनुसार इसके संग्रह कर्ता मुनि कुमारसेन हैं। इसमें २३ परिच्छेद हैं १. मन्त्रलक्षण, २. विधिमंत्र, ३. लक्ष्म, ४ . सर्वपरिभाष, ५. सामान्य मंत्र साधन, ६. सामान्य यन्त्र, ७. गर्भोत्पत्ति विधान, ८. बाल चिकित्सा, ९. ग्रहोपसंग्रह, १०. विषहरण, ११. फणितंत्र मण्डल्याद्य, १२. पनयोरुजांशमनं, १३-१५. कृते खग्वद्योवधः १६. विधान उच्चाटन, १७ विद्वेषन, १८. स्तम्भन, १६. शान्ति, २०. पुष्टि, २१ वश्य, २२. आकर्षण, २३. मर्म्म आदि ।
विद्यानुवाद
जिनरत्नकोश में उपरोक्त विद्यानुवाद का तो कोई निर्देश नहीं है किन्तु विद्यानुवाद के नाम से अन्य दो ग्रन्थों का निर्देश है। इसमें एक विद्यानुवाद के कर्ता मल्लिषेण उल्लिखित हैं । चन्द्रप्रभ जैन मंदिर भूलेश्वर बम्बई, पद्मराग
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