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३२८ तान्त्रिक साधना के विधि-विधान दिग्पाल एवं नवग्रह आह्वान तथा पूजन
जिस प्रकार आत्मरक्षा के हेतु न्यास और सकलीकरण किया जाता है उसी प्रकार साधना में विघ्न के निवारण के लिए दिग्पालों का आह्वान कर दिग्बन्धन किया जाता है। दिग्पाल दिशारक्षक देवता है, अतः साधना या पूजा के प्रारम्भ में दसो दिशाओं से होने वाले विघ्नों के निवारण के लिए उनका आह्वान एवं पूजन आवश्यक माना जाता है। जैन परम्परा में दिग्पालों की अवधारणा हिन्दू परम्परा के समरूप ही है और सम्भवतः वहीं से गृहीत है। इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा हम जैन देव मण्डल नामक अध्याय में कर चुके हैं। दिग्पालों के आह्वान, पूजन के साथ-साथ नवग्रहों के आह्वान एवं पूजन का भी निर्देश मिलता है। दिग्पालों एवं नवग्रहों का आह्वान करके उनसे जिन प्रतिमा के सम्मुख अवस्थित होने की प्रार्थना की जाती है और फिर वासक्षेप से उनका पूजन किया जाता है। पुनः जिस प्रकार हिन्दू तान्त्रिक साधना में मन्त्र साधना एवं पूजा आदि के विधान के समय सर्वप्रथम दिग्पालों एवं नवग्रहों का पूजन किया जाता है, उसी प्रकार जैन परम्परा में भी दिग्पालों एवं नवग्रहों का आह्वान, स्थापन एवं पूजन किया जाता है। मन्त्रराजरहस्य में उनके आह्वान और पूजन का निम्न विधान दिया गया है
इन्द्रमग्निं यमं चैव नैर्ऋतं वरुणं तथा। वायुं कुबेरमीशानं नागान् ब्रह्माणमेव च ।। आगत्य यूयमिह सानुचराः सचिह्नाः पूजाविधौ मम सदैव पुरो भवन्तु।। ॐ आदित्य-सोम–मङ्गल-बुध-गुरु-शुक्राः शैनेश्चरो राहुः । केतुप्रमुखाः खेटा जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु ।।
इति तत्तदिक्षु वासक्षेपाद् दिक्पाल-ग्रहाहानम् ।।४।। दिग्बन्धन छोटिका प्रदर्शन
पूजा एवं मन्त्र साधना में विघ्न निवारण हेतु दिग्बन्धन किया जाता है। इसमें सभी दिशाओं में छोटिका प्रदर्शन अर्थात् चुटकी बजाई जाती है। परम्परागत विश्वास यह है चुटकी बजाने से देवता प्रसन्न होते हैं और परिणाम स्वरूप दिशा रक्षक देवता विभिन्न दिशाओं से होने वाले विघ्नों का नाश करते हैं। चुटकी अंगूठे से तर्जनी अंगुली को उठाकर बजाई जाती है। मन्त्रराजरहस्य में यह भी उल्लेख है कि ऋ ऋ ल ल इन चारों स्वरों को छोड़कर छहों दिशाओं
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