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१३० जैनधर्म और तान्त्रिक साधना विट्ठोसहि पाठ है यहाँ षट्खण्डागम का पाठ अधिक उचित लगता है। इसी प्रकार जहाँ सूरिमंत्र के ४१वें पद में 'अम्मियसविणं' पाठ है वहाँ षट्खण्डागम में 'अमउसविणं' पाठ है, किन्तु यह अन्तर तो मात्र प्राकृतभाषा के स्वरूप की अपेक्षा से है। इसी प्रकार सूरिमंत्र के ४४ वें पद में 'वर्धमानलद्धीणं' पाठ है।
वहाँ षट्खण्डागम में ‘वद्धमानबुद्धरिसिस्स' पाठ है जो अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन एवं उचित लगता है। ज्ञातव्य है कि सूरिमंत्र की अन्य वाचनाओं में भी षट्खण्डागम का यह पाठ मिला है। सूरिमन्त्र के लब्धिपदों के जाप से होने वाली लौकिक एवं भौतिक उपलब्धियाँ : १. ॐ नमो अरिहंताणं नमो जिणाणं हाँ हीं हूँ ह्रौं हः अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय
स्वाहा! ॐ हीं अर्ह अ सि आ उ सा हौं हौं स्वाहा-इन सब (मंत्रों) का प्रयोग ___ करना चाहिए। इनको जपने से शूल (कष्ट) की शान्ति होती है। २. ॐ नमो अरिहंताणं नमो जिणाणं ही पूर्वक १०८ पुष्पों के द्वारा जाप करने
से ताप (ज्वर) दूर होता है। ३. णमोपरमोहि जिणाणं हाँ-इसके जप से शिर का रोग नष्ट होता है। ४. णमो सव्वोहिजिणाणं हाँ- इसके जप से आँखों का रोग दूर होता है। ५. णमो अणंतोहिजिणाणं-इसके जप से कानों का रोग दूर होता है ६. णमो कुट्ठबुद्धीणं-इसके जप से शूल,फोड़ा और पेट के रोग दूर होते हैं। ७. णमो बीजबुद्धीणं-इसके जप से श्वांस और हिक्का दूर होती है। ८. णमो पदाणुसारीणं-इसके जप से दूसरे के साथ हुए विवाद/कलह शान्त
होते हैं। ६. णमो संभिन्नसोयाणं-इसके जप से खाँसी दूर होती है। १०. णमो पत्तेयबुद्धाणं-इसके जप से (विवाद में) प्रतिपक्षी की विद्या की शक्ति
अवरुद्ध हो जाती है। ११. नमो सयंसंबुद्धाणं-इसके जप से कवित्व और पाण्डित्य प्राप्त होता है। १२. णमो बोहिबुद्धाण-इसके जप से दूसरों को दी गई विद्या वापस प्राप्त हो
जाती है। इसकी सिद्धि के लिए ५२ दिन तक इसका जप करना चाहिए। १३. नमो उज्जुमईणं-इसके जप से शांति प्राप्त होती है। इसका २४ दिन तक
जप करना चाहिए।
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