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अध्याय ७ यन्त्रोपासना और जैनधर्म
अन्य तान्त्रिक परम्पराओं के समान जैन धर्म में भी मन्त्रों के साथ-साथ यन्त्रों का भी विकास हुआ है। यन्त्र ज्यामितीय आकृतियों के आधार पर निर्मित किये जाते हैं, जिनके अन्दर विविध मन्त्र एवं संख्याएँ एक निश्चित क्रम में लिखे हुए होते हैं। जहाँ मन्त्र ध्वनिरूप होते हैं और उनका जप किया जाता है, वहाँ यन्त्र आकृतिरूप होते हैं और उनका धारण या पूजन होता है। रचना स्वरूप की अपेक्षा से यन्त्र दो प्रकार के होते हैं- (१) जिनमें बीजाक्षर या मन्त्र लिखे जाते हैं एवं (२) वे जिनके अन्दर विशिष्ट क्रम में संख्याएँ लिखी जाती हैं। प्रथम प्रकार के उदाहरण ऋषिमण्डल, परमेष्ठिविद्यायंत्र आदि हैं, जबकि दूसरे प्रकार के उदाहरण नमस्कारमंत्रआनुपूर्वीयन्त्र, पैसठियाँ यन्त्र आदि हैं। पुनः पूजन और धारण की अपेक्षा से भी यन्त्र दो प्रकार के होते हैं, जिनका धारण किया जाता है वे धारणयंत्र होते हैं और जिनका पूजन किया जाता है वे पूजा यन्त्र कहलाते हैं। पूजायंत्र सामान्यतया स्वर्ण, रजत या ताम्र पत्रों पर अंकित होते हैं जबकि धारणयन्त्र भोजपत्र, कागज आदि पर लिखे जाते हैं और ताबीज आदि के रूप में धारण किये जाते हैं। जैन परम्परा में पूजायन्त्र और धारण यन्त्र दोनों ही प्रचलन में हैं। जैन परम्परा में पूजायन्त्र का सर्वप्राचीन रूप मथुरा के आयागपट्टों में मिलता है। ये आयागपट्ट ईसापूर्व प्रथमशताब्दी से ईसा की तीसरी शती के मध्य निर्मित हैं। ये यन्त्रोपासना के प्राचीन उत्तम रूप हैं। यह भी ज्ञातव्य है कि जैनधर्म में पूजायंत्रों की अपेक्षा धारणयंत्र परवर्तीकाल में तन्त्र के प्रभाव से ही अस्तित्व में आये हैं।
जहाँ तक यन्त्रों की कार्य शक्ति का प्रश्न है, मन्त्र के समान यन्त्र को भी पौद्गलिक ही माना गया है, अतः यन्त्रों की प्रभावशीलता भी यान्त्रिक ही होगी। यन्त्राकृतियों और उनमें लिखित बीजाक्षरों, मन्त्रों और संख्याओं की कितनी क्या प्रभावशीलता होती है, यह एक स्वतन्त्र शोध का विषय है और वैज्ञानिक विधि से प्रयोगात्मक आधारों पर ही उसे सिद्ध किया जा सकता है। प्रामाणिक शोधों के अभाव में यन्त्रों की प्रभावशीलता के सम्बन्ध में कछ कहना कठिन है, फिर भी जैन परम्परा में पूजाविधान एवं प्रतिष्ठा आदि कार्यों में सम्पूर्ण आस्था के साथ यन्त्रों का प्रयोग होता है। इन जैन यन्त्रों की, अन्य तान्त्रिक साधनाओं में प्रयुक्त यन्त्रों से आकृतिगत समानताओं के अतिरिक्त अन्य समानताएँ अल्प ही हैं, क्योंकि इन यन्त्रों में लिखे जाने वाले बीजाक्षरों, मन्त्रों अथवा संख्या आदि की योजना जैन आचार्यों ने अपने ढंग से की है। आगे हम 'मंगलम', जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भैरवपद्मावतीकल्प तथा लघुविद्यानुवाद आदि ग्रन्थों से कुछ प्रमुख जैन यन्त्र प्रस्तुत कर रहे हैं।
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