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यंत्रोपासना और जैनधर्म
सो हं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम्, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ।।५।।
सोऽहंतथापितयभक्रियशान्मुनीश अभी भी की भी फ्री श्री हींगहरामोपागलोहिनिः । .योधीग्रोोग्रीनीधी
ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो अणंतोहिजिणाणं । |मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं सर्वसंकट
निवारणेभ्य: सुपार्श्वयक्षेभ्यो नमो
नमः स्वाहा। प्रभाव-आँख के सारे रोग दूर होते हैं।
अन्वय + अर्थ मुनीश ! हे मुनियों के ईश्वर !
नाध्यानाक निजशिशाः परिपालनार्थम् ५
की भी की झीं। भ्यो नमानमः स्वाहा
सी 1.
पानीप्रीतीग्रीग्री
क एणणहीश्रील्लीको
नों की में कतुस्तक विगतशतिरपि प्रवृत्तः ।
भी
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अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम्। . यत्कोकिलः किलमधौ मधुर विरौति, तच्चाम्र–चारु-कलिकानिकरैकहेतुः ।।६।।
यन्त्र
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अत्पभुनभुतयतापरिहासधाम होहीही होहोही124 नहींपर्हगमोसडीए
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ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो कोटबुद्धीणं । मंत्र - लीं श्रीं श्रीं श्रधः संथ : थ:: ठः ट: र: सरस्वती भगवती विद्या-18
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LA प्रसादं कुरु कुरु स्वाहा। प्रभाव--अनेक विद्याएँ सहज ही आ जाती हैं।
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बिमानसाइकुस्कुरुस्वाहा।
स्वारभूतकलिकानिकरैकहेतु
त्वक्तिरेव मुरयरीकुरुतेवनान्मामा
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