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________________ १८२ यंत्रोपासना और जैनधर्म सो हं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम्, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ।।५।। सोऽहंतथापितयभक्रियशान्मुनीश अभी भी की भी फ्री श्री हींगहरामोपागलोहिनिः । .योधीग्रोोग्रीनीधी ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो अणंतोहिजिणाणं । |मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं सर्वसंकट निवारणेभ्य: सुपार्श्वयक्षेभ्यो नमो नमः स्वाहा। प्रभाव-आँख के सारे रोग दूर होते हैं। अन्वय + अर्थ मुनीश ! हे मुनियों के ईश्वर ! नाध्यानाक निजशिशाः परिपालनार्थम् ५ की भी की झीं। भ्यो नमानमः स्वाहा सी 1. पानीप्रीतीग्रीग्री क एणणहीश्रील्लीको नों की में कतुस्तक विगतशतिरपि प्रवृत्तः । भी H HHHAKAL Labhinet - - - - अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम्। . यत्कोकिलः किलमधौ मधुर विरौति, तच्चाम्र–चारु-कलिकानिकरैकहेतुः ।।६।। यन्त्र । अत्पभुनभुतयतापरिहासधाम होहीही होहोही124 नहींपर्हगमोसडीए - ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो कोटबुद्धीणं । मंत्र - लीं श्रीं श्रीं श्रधः संथ : थ:: ठः ट: र: सरस्वती भगवती विद्या-18 HEELECOMMENT LA प्रसादं कुरु कुरु स्वाहा। प्रभाव--अनेक विद्याएँ सहज ही आ जाती हैं। " P aRNERALynsan E बिमानसाइकुस्कुरुस्वाहा। स्वारभूतकलिकानिकरैकहेतु त्वक्तिरेव मुरयरीकुरुतेवनान्मामा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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