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________________ १८३ जैनधर्म और तांत्रिक साधना त्वत सस्तवे न भवसन्तति सन्नि बद्ध, पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्त लोक-मलिनील-मशेषमाशु. सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वर-मन्धकारम् ।।७।। यन्त्र - । - वत्संस्तवेन भवसन्ततिसबिर ई मानों नौ नाना नों नंही एा मोवीनदी। मन्त्र ऋद्धि --ॐ ह्रीं अर्ह णमो बीजवुद्धीण। मंत्र --ॐ ह्रीं ह्र सं धां श्रीं क्रीं क्ली सर्वदुरितसंबटक्षद्रोपंद्रवकष्ट निवारणं सूयासाभन्मामेवशायरमन्धकारम् नियाता कुरु२ स्याहा। नन्हीहस श्रानोक्रोधी सर्व । नींनी नो नो नो नो नों पापंक्षएा त्यमुपैतिशरीरभाजाना गुरु गुरु स्वाहा प्रभाव-सपंजीलित हो जाता है; गारे पाग, संकट, छोटे-मोटे उपद्रव दूर हो जाते हैं। . . . MILeghalen. - - - - मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेदमारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः ।।७।। मत्वेतिनाथतय संस्तवनं मयेद - य य य य यं मन्त्र हिरवारकोभरि गोपा ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो अरिहंताणं णमो पादाणुसारिणं । । मंत्र –ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः असि आ उ सा अप्रतिचके फट विचक्राय न प्र स्वाहा । ॐ ह्रीं लक्ष्मणरामचंद्र देव्यं नमो नमः स्वाहा । प्रभाव-सारे अरिष्ट योग दूर हो जाते हैं। 18 य य मुक्ताफलपतिमुपैनि ननूदरिन्दन नहीउमाल्पद्रपन्या य यं यं यं य सारि पर्नुअसिग्राउसा मारभ्यतेतनुधियापितव प्रभावात् ।। यं यं قطط للتلاعاجهة Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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