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________________ १८४ यंत्रोपासना और जैनधर्म आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषम्, त्वत्-सङ्कथापि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्र-किरणः कुरुते प्रभव, पद्माकरेषु जलजानि विकास-भाजि।।६।। - D प्रास्तांतवस्तवनमस्तसमतदाष Trरधान RAJIN मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो अरिहंताणं णमो संभिण्णसोदाराणं ह्रां ह्रीं ह्रई फट् स्वाहा। मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्रौं क्लीं इवीं र: र: हं हः नमः स्वाहा। प्रभाव-पथ कीलित होता है और सातों भय भाग जाते हैं। P५५ WLVAN पद्माकरेजलजानिविकासभाजिर Stabie balance त्यत्संकथापिजगतांदुरितानि हन्ति। Kumar 0200 - - - नात्यद्भुतं भुवन-भूषण! भूत-नाथ! भूतै-र्गुणै-भुवि भवन्त-मभिष्टु वन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्म-समं करोति ।।१०।। नात्यद्भुतभुबनभूषाभूतनाया SKIN ही होतीस मन्त्र सामना) यह नात्मसमकरोति १० बिपाश्नाय HILA भूतगुएरो मुवि भवन - ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो सयंबुद्धीणं । मंत्र -जन्मसद्ध्यानतो जन्मतो वा मनो त्कर्षतावादि नोर्यानाक्षान्ताभावे प्रत्यक्षा बुद्धान्मनो ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह ह्रः श्रां श्री श्रृंश्रीं श्रः सिद्धबुद्ध- KE कृतार्थो भव भव वषट् संपूर्ण स्वाहा। प्रभाव-कुत्ते का काटा निविष हो जाता है। जयप - mmad - B hihd Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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